संसद में पेश हुआ भारतीय आयुर्विज्ञान संशोधन विधेयक 2019, 2 साल तक शासी बोर्ड देखेगा कार्य
राज्यसभा ( Rajy Sabha ) में सपा सांसद जावेद अली ने गुरुवार को यह मसला उठाया। उनके मुताबिक पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय में 156 सीटों का विज्ञापन दिया गया है। 200 प्वाइंट रोस्टर के मुताबिक एससी, एसटी और पिछड़ों के लिए 75 सीटें होनी चाहिए। लेकिन इसमें सिर्फ 50 सीटें दी गई है। तमिलनाडु केंद्रीय विश्वविद्यालय में 113 सीटों का विज्ञापन है। पिछड़े वर्गों के लिए 56 सीटें होनी चाहिए लेकिन विज्ञापन में सिर्फ 40 सीटें दी गई है। वहीं अमरकंटक के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में कुल 95 सीटों में 47 सीटें रिजर्व होनी चाहिए लेकिन सिर्फ 35 सीटें आरक्षित है। ऐसे ही कर्नाटक में 137 सीटों का विज्ञापन दिया गया है जिसमें रिजर्व श्रेणी की सीटें 68 है। यहां तक कि चारों विश्वविद्यालय में ओबीसी वर्ग के लिए एसोसिएट और प्रोफेसर की एक रिक्ति भी नहीं दी गई है।
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गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अप्रैल, 2017 में विश्वविद्यालयों में नियुक्ति के लिए यूनिवर्सिटी के बदले विभागवार नियुक्ति को मानने का फैसला किया था। इसे लेकर एसी, एसटी और ओबीसी संगठनों ने विरोध किया। वहीं सपा और बसपा समेत तमाम विपक्षी दलों ने मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया। इसके बाद मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान 7 मार्च, 2019 कों केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कोर्ट के फैसले को पटलते हुए 200 प्वाइंट रोस्टर लागू करने के लिए अध्यादेश को मंजूरी दी। राष्ट्रपति ने भी उसी दिन इसको मंजूरी दे दी। लोकसभा में सोमवार को इस अध्यादेश को बिल का स्वरूप देने के लिए केंद्रीय शिक्षण संस्थान (शिक्षक काडर में आरक्षण) विधेयक लोकसभा में पेश भी किया गया। लेकिन अब विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार के इस फैसले के बाद भी यह लागू नहीं हो रहा है।