आपको याद होगा कि कुछ दिन पहले ये खबरें आई थीं कि बांग्लादेश में तेजी से हिंदुओं की जनसंख्या कम हो रही है। इसपर मानवाधिकार कार्यकर्ता व प्रोफेसर रिचर्ड बेंकिन ने बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति को लेकर चिंता जाहिर की थी। बेंकिन ने कहा था कि बांग्लादेश में हिंदुओं की संख्या लगातार कम हो रही है। देश में 1974 के वक्त हिंदुओं की संख्या कुल आबादी में जहां एक तिहाई थी, वहीं 2016 में यह घटकर कुल आबादी का 15वां हिस्सा रह गई है। उन्होंने ये बातें केरल के कोझिकोड़ में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेते हुए कही।
भारत में रहना घर जैसा लगता है
बांग्लादेशी लेखिका ने कहा कि भारत में उनके पास घर नहीं है, लेकिन वह यहां अपने घर जैसा महसूस करती हैं। उन्होंने बताया कि यही वजह है कि वह भारत में यूरोप की तुलना में स्वतंत्र रूप से लिख पाती हैं। तस्लीमा ने कहा, ‘मैं इस क्षेत्र की महिलाओं के बारे में लिख पाती हूं, क्योंकि उनकी संस्कृति, इतिहास और कहानी एक समान है। उन्हें जिस दमन और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है वह तकरीबन समान है। मुझे पाठकों की प्रतिक्रियाएं भी मिलती हैं जो किसी लेखक के लिए काफी महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि मुझे भारत में रहना पसंद रहा है।’
कट्टरपंथियों के लिए भारत में कोई जगह नहीं
तस्लीमा ने वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में आगे कहा कि, ‘भारत में मुस्लिम समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया है। लेकिन बांग्लादेश में यह समुदाय बहुसंख्यक है। भारत में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच एकता देखने को मिलता है। यहां लोकतंत्र की जड़ें काफी मजबूत रही है, इसलिए यहां सभी समुदायों के लोग खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं।’ उन्होंने आगे अपनी राय रखते हुए कहा कि भारत में कट्टरपंथियों की कोई जगह नहीं है। इसके अलावा यहां उचित संतुलन भी बनाकर रखा जाता है। लिहाजा, वह खुद को यहां ज्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं।
यूरोप और भारत में खास अंतर नहीं
बांग्लादेश लेखिका ने भारत की यूरोप से तुलना करते हुए कहा कि, ‘जब मैं यूरोप में रहती थी तो भारत को अपना घर या देश समझकर अक्सर कोलकाता आया करती थी। हालांकि, मैं विभाजन के बाद पैदा हुई थी, लेकिन मेरी समझ में धर्म के आधार पर देश का बंटवारा बचपना था। भाषा और संस्कृति एक होने के कारण दोनों देशों (भारत और बांग्लादेश) की राजनीति भी एक तरह की है। किताबें वहां भी प्रतिबंधित हैं और यहां भी। मुझे बांग्लादेश में भी धमकियां मिलती थी और यहां भी मिलती हैं।’