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महानदी पर महासंग्रामः रमन और नवीन ने आस्तीनें चढ़ायीं

Published: Nov 22, 2016 03:15:00 am

महानदी जल बंटवारे को लेकर ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्य के बीच महासंग्राम छिड़ गया है। 

Hirakund

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भुवनेश्वर, महेश शर्मा। महानदी जल बंटवारे को लेकर ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्य के बीच महासंग्राम छिड़ गया है। रविवार को ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जलविवाद पर बातचीत की और इसके निपटारे के लिए न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) गठित करने की मांग की। उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार पर रोक के बाद भी छोटे-बड़े बांध निर्माण का काम चालू होने की जानकारी देते हुए कहा कि ओडिशा के हितों की केंद्र द्वारा अनदेखी की जा रही है। सत्तादल बीजू जनता दल ने बीते शुक्रवार से हस्ताक्षर अभियान शुरु कर दिया है। कटक से शुरू हुए इस अभियान में पहला हस्ताक्षर खुद नवीन पटनायक ने किया। कुल 80 लाख हस्ताक्षर कराए जाएंगे। इसके बाद करीब 500 किमी. की मानव श्रृंखला (ह्यूमन चेन) बनायी जाएगी को संबलपुर के हीराकुड बांध से पारादीप तक जाएगी। 

छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों के बीच चल रहा महानदी जल विवाद भी 33 साल पुराना है। महानदी के जल-बंटवारे को लेकर पहला समझौता अविभाजित मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री जेबी पटनायक के बीच 28 अप्रैल 1983 को हुआ था। इसमें तय किया गया था कि नदी पर बांध निर्माण संबंधी कोई विवाद सामने आता है तो उसका निराकरण इंटर-स्टेट काउंसिल करेगी। जल-संसाधन मंत्री उमा भारती के साथ ओडिशा और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने साझा बैठक की जो बेनतीजा रही। 

पटनायक चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ क्षेत्र में महानदी पर निर्माणाधीन बांध प्रोजेक्ट पर पहले काम बंद किया जाए, फिर समझौते की बात की जाए। जबकि रमन सिंह एक भी प्रोजेक्ट का रोकने के लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस भी कूद-फांद मचाए है। केंद्रीय पेट्रोलियम राज्यमंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि उनकी पार्टी महानदी पर श्वेत पत्र लाएगी। दूसरी तरफ कांग्रेस के ओडिशा राज्य अध्यक्ष प्रसाद हरिचंदन भी श्वेत पत्र जारी करने की बात कह रहे हैं पर दोनों ही नेता अब तक खामोश हैं। उलटे इस मुद्दे पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और प्रतिपक्ष के नेता नरसिंह मिश्र के बीच कलह खुलकर आ गयी।

छत्तीसगढ सरकार ने महानदी पर चार बडी परियोजनाओं के निर्माण का प्रस्ताव किया है जिनमें से केवल कैलो डैम के निर्माण को मंजूरी दी गयी है। छत्तीसगढ़ ने केलो अलावा पेरिमानडीह, कैंडुला और तेंडुला परियोजनाओं को केन्द्रीय जल आयोग के पास भेजा है लेकिन इसके निर्माण को लेकर तकनीकी सलाहकार समिति से मंजूरी अब तक नहीं मिली है। पर निर्माण चालू है। ओडिशा सरकार का आरोप है कि तेंडुला डैम पर निर्माण पर काम बगैर स्वीकृति के किया गया है। पिछले 10 वर्षों के दौरान ओडिशा में महानदी में जल के बहाव में एक तिहाई की कमी नहीं हुयी है। आईआईटी मद्रास और मुम्बई की रिपोर्ट के अनुसार महानदी में दस प्रतिशत पानी की कमी है। 

सन 1983 में हुये एक समझौते के तहत मध्य प्रदेश और ओडिशा के बीच महानदी को लेकर एक संयुक्त कंट्रोल समूह बनाया जाना था लेकिन अब तक इसका गठन नहीं किया गया। छत्तीसगढ़ सरकार ने महानदी की छाती पर एक के बाद 41 बांध बनाकर ओडिशा के हिस्से का भारी मात्रा में पानी रोक दिया है। खेती और बिजली उत्पादन पर इसका सीधा असर पड़ने लगा है। संभव है कि पेयजल संकट भी उत्पन्न हो जाए।

ओडिशा के मुख्य सचिव आदित्य पाढ़ी ने कहा कि छत्तीसगढ़ द्वारा बनाए जा रहे बैराज अवैध है। ओडिशा को जानकारी दिए बिना ही छत्तीसगढ़ सरकार महानदी पर इतने बैराज बना रही है कि उनके बनने के बाद ओडिशा के लिए पानी ही नहीं बचेगा। हीराकुड बांध की उपयोगिता खतम हो सकती है। ओडिशा सरकार को सूचित न करने के सरकारी दावे की हवा निकालने का काम सबसे नवीन सरकार के वरिष्ठ मंत्री दामोदर राउत ने यह कहकर किया कि 2008 से केलो बांध पर काम चल रहा है और सरकार को मालूम ही नहीं, यह बात गले नहीं उतरती। इधर भाजपा ने एक के एक बाद लेटर बम फोड़ने शुरू कर दिए। छत्तीसगढ़ में निर्माणाधीन और स्वीकृत बांध पर 2008 से लेकर 2011 तक दोनों राज्यों की सरकार के बीच पत्र व्यवहार की प्रतियां सार्वजनिक करनी शुरू कर दी। 

छत्तीसगढ़ के जल संसाधन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने जारी बयान में कहा है कि मामला सिर्फ अरपा भैंसाझार का है इसके लिए केंद्र से अनुमति मिल चुकी है। ओडिशा के मुख्यसचिव का सूचना न देने का आरोप गलत है। ओडिशा सरकार में भाजपा कोटे से मंत्री रहे विजय महापात्र अपनी ही पार्टी से इतर राग अलाप रहे हैं। उनका कहना है कि रिवर बोर्ड गठित किया जाए। छत्तीसगढ़ के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 55 प्रतिशत हिस्से का पानी महानदी में जाता है। हीराकुंड बांध में महानदी का औसत बहाव 40 हजार 773 एमसीएम है। इसमें से 35 हजार 308 एमसीएम का योगदान छत्तीसगढ़ देता है। जबकि छत्तीसगढ़ द्वारा वर्तमान में मात्र लगभग 9000 एमसीएम पानी का उपयोग किया जा रहा है, जो कि महानदी के हीराकुंड तक उपलब्ध पानी का सिर्फ 25 प्रतिशत है।

छत्तीसगढ़ के वृहद , मध्यम एवं छोटी जल परियोजनाओं को मिलाकर करीब 17 परियोजनाओं के कारण महानदी का ओडिशा के हिस्से का पानी कम हुआ है। ओडिशा सरकार ने तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार एवं ओडिशा के बीच हुए जल समझौते ही दुहाई देकर आपत्ति जताई है और छग से बहकर जाने वाली महानदी एवं उसकी सहायक नदियों पर बने परियोजनाओं को नियम विरुद्ध ठहराया है। सीमा से लगे रायगढ़ जिले में केलो परियोजना, साराडीह बैराज एवं कलमा बैराज को भी ओडिशा सरकार ने हिट लिस्ट में रखा है। 

महानदी और इसकी सहायक नदियों के कुल ड्रेनेज एरिया का 53.90 प्रतिशत छत्तीसगढ़ में, 45.73 प्रतिशत ओड़िशा में। हीराकुड तक महानदी का जलग्रहण क्षेत्र 82 हजार 432 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से 71 हजार 424 वर्ग किलोमीटर छत्तीसगढ़ में है जो कि इसके सम्पूर्ण जल ग्रहण क्षेत्र का 86 प्रतिशत है। हीराकुड बांध में महानदी का औसत बहाव 40 हजार 773 एम.सी.एम. है। इसमें से 35 हजार 308 एम.सी.एम. का योगदान छत्तीसगढ़ देता है। जबकि छत्तीसगढ़ द्वारा वर्तमान में मात्र लगभग 9000 एम.सी.एम. पानी का उपयोग किया जा रहा है जो कि महानदी के हीराकुड तक उपलब्ध पानी का सिर्फ 25 प्रतिशत है। 

केलो बांध
जल भराव क्षमता- 76.07 मिलियन घन मीटर
पेयजल की आपूर्ति- 4.44 मिलियन घन मीटर
औद्योगिक प्रयोजन- 4.44 मिलियन घन मीटर

साराडीह बैराज
जल भराव क्षमता- 54.24 मिलियन घन मीटर
औद्योगिक प्रयोजन- 127.83 क्यूबिक घन मीटर
कृषि प्रयोजन- 832 एकड़

कलमा बैराज
क्षमता- 50.39 मिलियन घन मीटर
औद्योगिक प्रयोजन- 251.83 क्यूबिक घन मीटर

पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व
महाभारत के भीष्म पर्व में चित्रोत्पला नदी (पहले यही नाम था) को पुण्यदायिनी और पाप विनाशिनी कहकर स्तुति की गयी है। सोमेश्वरदेव के महुदा ताम्रपत्र में महानदी को चित्रोत्पला-गंगा कहा गया है। महानदी को गंगा कहने के बारे में मान्यता है कि त्रेतायुग में श्रृंगी ऋषि (सिरवा आश्रम अब छत्तीसगढ़) अयोध्या में महाराजा दशरथ के यहां पुत्रेष्ठि यज्ञ कराकर लौटे थे। उनके कमंडल में यज्ञ में प्रयुक्त गंगा का पवित्र जल भरा था। समाधि से उठते समय कमंडल का अभिमंत्रित जल गिर पड़ा और बहकर महानदी के उद्गम में मिल गया। तब से महानदी गंगा के समान पवित्र मानी जाती हैं। 

इतिहासकार उल्लेख करते हैं कि पहले इस नदी से कलकत्ता तक वस्तुओं का आयात-निर्यात हुआ करता था। जावा, सुमात्रा, बाली द्वीप तक कारोबारी इसी नदी से होकर जाते थे। गिब्सन नामक एक अंग्रेज़ विद्वान ने अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख भी किया है। उसके अनुसार संबलपुर में हीराकुंड नामक स्थान एक छोटा-सा द्वीप है। यहाँ हीरा मिला करता था। इन हीरों की रोम में बड़ी खपत थी। महानदी में रोम के सिक्के के पाये जाने को वे इस तथ्य से जोड़ते हैं। व्हेनसांग ने भी अपनी यात्रा में लिखा था कि मध्यदेश से हीरा लेकर लोग कलिंग में बेचा करते थे। यह मध्यदेश संबलपुर ही हुआ करता था। अली युरोपियन ट्रेव्हलर्स इन नागपुर टेरीटरी नामक ब्रिटिश रिकार्ड जो सन १७६६ का है में उल्लेख है कि एक अंग्रेज़ को इस बात के लिए भेजा गया था कि वह संबलपुर जाकर वहाँ हीरे के व्यापार की संभावनाओं का पता लगाये। हीराकुंड बांध भी इसी महानदी को बांध कर बनाया गया है।
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