scriptसावधानः अगले दशक के अंत तक पानी रुलाएगा, भूजल का स्तर गिरता चला जाएगा | Beware: Low water table will become big danger by 2030, precaution | Patrika News

सावधानः अगले दशक के अंत तक पानी रुलाएगा, भूजल का स्तर गिरता चला जाएगा

locationनई दिल्लीPublished: Sep 03, 2018 01:07:44 pm

नीति आयोग की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भूजल स्तर लगातार घट रहा है। इसके चलते वर्ष 2030 तक यह देश में सबसे बड़े संकट के रूप में उभर कर सामने आएगा।

Danger 2030

सावधानः अगले दशक के अंत तक पानी रुलाएगा, भूजल का स्तर गिरता चला जाएगा

नई दिल्ली। नीति आयोग की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भूजल स्तर लगातार घट रहा है। इसके चलते वर्ष 2030 तक यह देश में सबसे बड़े संकट के रूप में उभर कर सामने आएगा। भूजल के घटते स्तर को लेकर भूवैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों की चिंता पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कड़े दिशा-निर्देश बनाने के लिए अल्टीमेटम दिया है। लेकिन ताज्जुब वाली बात यह है कि वर्ष 1996 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से भूजल स्तर का संकट लगातार गहराता जा रहा है। बड़ा सवाल है कि इतने साल बीतने के बावजूद भी प्रशासन ने कुछ खास फुर्ती क्यों नहीं दिखाई?
पर्यावरणविद् विक्रांत तोंगड़ की याचिका पर फैसला सुनाते हुए एनजीटी ने कहा कि पृथ्वी के अंदर जल स्तर लगातार घटता जा रहा है। वर्ष 1996 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) आज तक कोई योजना नहीं बना सका। इसलिए अब इस मामले को केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सचिव देखेंगे और फिर 4 सप्ताह में अपनी रिपोर्ट एनजीटी को सौंपेंगे।
तोंगड़ ने बताया, “एनजीटी कह रहा है कि घटते भूजल स्तर को थामने के लिए उचित मापदंड अपनाए जाने की जरूरत है। आलम यह है कि संवेदनशील क्षेत्रों में भी तेजी से भूजल स्तर घटा है। एनजीटी का कहना है कि इस पर जल संसाधन मंत्रालय को चाहिए कि वो उचित नीति बनाए और साथ में दिशा-निर्देश जारी करे। इसके लिए 4 सप्ताह का समय दिया गया है।”
नीति आयोग की रिपोर्ट में घटते भूजल स्तर को सबसे बड़ा संकट बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक यह सबसे बड़े संकट के तौर पर उभरेगा और सरकार इसको लेकर गंभीर नहीं है। इस रिपोर्ट पर तोंगड़ का कहना है, “इसमें कमी प्रशासन की है। कोई नियम-कायदा नहीं है। बोतलबंद पानी बनाने वाली कंपनियां अंधाधुंध पानी का दोहन कर रही हैं और इसके एवज में किसी तरह का भुगतान भी नहीं कर रही हैं। एक मापदंड तो तय करना होगा कि कंपनियां भूजल का दोहन कायदे से करें। इसकी निगरानी बहुत जरूरी है और इसके लिए भूजल के दिशा-निर्देशों को दुरुस्त करना पड़ेगा।”
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उन्होंने कहा, “एनजीटी कह रहा है कि संवेदनशील क्षेत्रों में भूमिगत जल को निकालने की अनुमति क्यों दी जा रही है? नोएडा सहित देशभर में बेसमेंट बनाने के लिए बड़े पैमाने पर भूजल का दोहन हो रहा है। इसके लिए आठ से दस मीटर तक खुदाई कर दी जाती है और खुदाई के दौरान निकलने वाले पानी को बर्बाद कर दिया जाता है।”
वह कहते हैं, “नियम यह होना चाहिए कि बेसमेंट की खुदाई का स्तर स्थानीय अथॉरिटी, बिल्डर या मकान मालिक नहीं बल्कि केंद्रीय भूजल प्राधिकरण तय करे कि बेसमेंट कितनी गहराई तक बनाया जाना चाहिए। कायदा यह है कि बेसमेंट का स्तर ग्राउंडवाटर स्तर से ऊपर ही रहना चाहिए ताकि इससे भूजल बच सके। यह मुद्दा सबसे पहले नोएडा में उठा और इसके बाद फरीदाबाद, गुड़गांव सहित देशभर में उठ गया।”
ताज्जुब है कि भूजल को लेकर राष्ट्रीय नीतियां बन चुकी हैं। राष्ट्रीय नीति वर्ष 2008 में बनी थी और बाद में इसमें कई संशोधन होते रहे, लेकिन भूजल का घटता स्तर नहीं थमा। इस पर तोंगड़ कहते हैं, “इसका मतलब साफ है कि गाइंडलाइंस उद्देश्यों पर खरी नहीं उतरी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भूजल के घटते स्तर को रोकने के लिए कारगर कदम उठाने होंगे। इसके लिए कृषि मंत्री से भी परामर्श मांगा गया।”

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