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शहीद-ए-आजम भगत सिंह: जिसने मौत को महबूबा माना और आजादी को दुल्हन

Published: Sep 28, 2016 11:18:00 am

भगतसिंह को एक ऐसे युवा के रूप में जाना जाता है जिनके लिए आजादी ही सपना थी और आजादी ही जिंदगी की मंजिल

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नई दिल्ली। ब्रिटिश भारत में आजादी की अलख जगाने वाले भगतसिंह को एक ऐसे युवा के रूप में जाना जाता है जिनके लिए आजादी ही सपना थी और आजादी ही जिंदगी की मंजिल। आज ही के दिन 28 सितंबर 1907 को तत्कालीन पंजाब के एक देशभक्त परिवार में जन्मे भगतसिंह ने अपना जीवन देश के लिए न्यौछावर कर दिया था।

उनके लिए प्रख्यात चिन्तक रामविलास शर्मा ने अपनी पुस्तक स्वाधीनता संग्राम: बदलते परिप्रेक्ष्य में उनके बारे में टिप्पणी की है:

“ऐसा कम होता है कि एक क्रान्तिकारी दूसरे क्रान्तिकारी की छवि का वर्णन करे और दोनों ही शहीद हो जायें। रामप्रसाद बिस्मिल 19 दिसम्बर 1927 को शहीद हुए, उससे पहले मई 1927 में भगतसिंह ने किरती में ‘काकोरी के वीरों से परिचय’ लेख लिखा। उन्होंने बिस्मिल के बारे में लिखा – ‘ऐसे नौजवान कहाँ से मिल सकते हैं? आप युद्ध विद्या में बड़े कुशल हैं और आज उन्हें फाँसी का दण्ड मिलने का कारण भी बहुत हद तक यही है। इस वीर को फाँसी का दण्ड मिला और आप हँस दिये। ऐसा निर्भीक वीर, ऐसा सुन्दर जवान, ऐसा योग्य व उच्चकोटि का लेखक और निर्भय योद्धा मिलना कठिन है।’ सन् 1922 से 1927 तक रामप्रसाद बिस्मिल ने एक लम्बी वैचारिक यात्रा पूरी की। उनके आगे की कड़ी थे भगतसिंह।”

भगतसिंह ने देश की आज़ादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया, वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़े आदर्श है। इन्होंने केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें 23 मार्च 1931 को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। सारे देश ने उनके बलिदान को बड़ी गम्भीरता से याद किया। पहले लाहौर में साण्डर्स-वध और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय असेम्बली में चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की।

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