दरअसल बीते 7 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया था कि सरकारी नौकरियों में प्रमोशन के लिए आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्यों को यह निर्देश नहीं दिया जा सकता है कि वो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को प्रमोशन दें।
Big News: पहले ही दिन अरविंद केजरीवाल की कैबिनेट में शामिल मंत्रियों को लेकर हुआ बड़ा खुलासा सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का विरोध करते हुए मीडिया से बातचीत में भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि वंचित वर्गों में आरक्षण एक मौलिक अधिकार है और कोई भी इसे उनसे नहीं छीन सकता।
उन्होंने कहा, “हम यह विरोध मार्च इसलिए आयोजित कर रहे हैं ताकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपनी असहमति दर्ज करा सकें और हम आगामी 23 फरवरी को भारत बंद बुलाएंगे।” उन्होंने यह भी कहा कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) जैसे कानून देश में काम नहीं करेंगे। हम जबतक विरोध करेंगे जब तक हमें हमारे अधिकार नहीं मिल जाते।
बीते 11 फरवरी को आजाद ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ एक पुनर्विचार याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि इसने संवैधानिक प्रावधानों को कमजोर किया है।
Big News: पूर्व मुख्यमंत्री के निजी सचिव के ठिकानों पर आयकर विभाग की छापेमारी में 2000 करोड़ का खुलासा बता दें कि 7 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने अपने फैसले में कहा, “इसमें कोई शक नहीं है कि प्रदेश सरकार आरक्षण देने को प्रतिबद्ध नहीं है, लेकिन किसी शख्स का इसे लेकर दावा करना मौलिक अधिकारों का हिस्सा नहीं है और न ही इसे लेकर अदालत प्रदेश सरकार को कोई आदेश जारी कर सकता है।”
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश उत्तराखंड सरकार की उस अपील पर आया था जिसमें उसने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए सांख्यिकी आंकड़े जुटाए जाएं। इससे यह पता चल सकेगा कि सरकारी नौकरियों में SC-ST वर्ग का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं और फिर पदोन्नति में आरक्षण दिया जा सके।