विकास कार्य की समीक्षा यात्रा पर निकले थे नितीश कुमार
नितीश अपने यात्रा के दौरान शेखपुरा जिले के अरीयरी ब्लॉक पहुंचे थे। उसी ब्लॉक के डीहा फरपर गांव में उनकी नजर एक टीले पर पड़ी यात्रा के दौरान सीएम की नजर शेखपुरा जिले के अरीयरी ब्लॉक के डीहा फरपर गांव में एक टीले पर पड़ी। मुख्यमंत्री को टीले में कुछ दिलचस्पी हुई।
डीहा फरपर गांव में एक टीले ने सीएम का ध्यान आकर्षित कर लिया
मुख्यमंत्री के साथ गए एक अधिकारी ने बताया सीएम को टीले के बनावट कुछ विचित्र लगी। उसे काफी दिलचस्पी से देखने के बाद उन्होंने मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह को इसकी जांच के लिए निर्देश दिया। उन्होंने सचिव से कहा कि इस टीले की केपी सिंह जायसवाल रिसर्च इंस्टिट्यूट एंड बिहार हेरिटेज डेवलपमेंट सोसाइटी तथा अन्य संस्थानों द्वारा इस्सकी जांच कराई जाए।
जांच के लिए की गयीं खुदाई में मिली नवपाषाण कालीन सभ्यता की मूर्तियां
मुख्यमंत्री के निर्देश पर केपी जायसवाल शोध संस्थान के निदेशक और बिहार विरासत विकास समिति के कार्यकारी निदेशक डॉ विजय कुमार चौधरी शेखपुरा जिले के अरियारी प्रखंड में डीह फरपार गांव पहुंचे। वहां जाके उन्होंने टीले के परिसर में प्रारंभिक खुदाई की। खुदायिके दौरान टीले से उन्हें नवपाषाण कालीन सभ्यता की मूर्तियां मिली। मूर्तियों में से एक विष्णु की मूर्ति है और इसके अलावा महात्मा बुद्ध की दो तरह की मूर्तियां पायी गयीं है। बुद्ध की मूर्तियों में वे एक में परिनिर्वाण मुद्रा में और दूसरी में भूमिस्पर्श मुद्रा में है।
बता दें कि बिहार सीएम के निर्देश के 24 घंटों के भीतर ही केपी जायसवाल शोध संस्थान एवं बिहार विरासत विकास समिति की संयुक्त टीम पर पहुंच गयी। और वहां पहुंच कर उन्होंने कई नमूने इकठ्ठा किये।
पुरातत्व विशेषज्ञ की टीम ने भी गांव से जांच के लिए नमूने लिए
इस खोज के विषय में पुरातत्व विशेषज्ञ डॉ. अनंत आशुतोष वेदी के नेतृत्व में भी डीहा गांव के विभिन्न हिस्सों से पुरातात्विक महत्व के नमूने लिए गए। इस टीम ने भी जांच के लिए पुरानी मूर्तियों के टुकड़े, बर्तन एवं मिट्टी के नमूने अपने साथ ले गयी। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने वर्ष 2007 से 2013 के बीच भी केपी जायसवाल शोध संस्थान को बिहार के सभी पुरातात्विक महत्व के स्थानों पर विस्तृत शोध का निर्देश दिया था। उस अंतराल में कराए गए शोध में करीब छह हजार से अधिक स्थलों की सूची बनाई गई थी। उस समय भी डीहा को सिर्फ बुद्ध एवं विष्णु की पालकालीन मूर्तियों के लिए उस सूचि में रखा गया था।