वन एवं पर्यावरण विभाग के प्रधान सचिव दीपक कुमार सिंह ने बताया कि चिड़ियाघर में गैंडों के प्रजनन को बढ़ावा देने के लिए प्रजनन केंद्र बनाया गया है। यहां गैंडों के बड़ा होने पर वाल्मीकि नगर में छोड़ने की योजना है। उन्होंने कहा कि इससे वाल्मीकिनगर को गैंडों के अधिवास के रूप में विकसित किया जा सकेगा। गौरतलब है कि पटना स्थित संजय गांधी जैविक उद्यान में गैंडों के अधिवास वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से ऐसी घास लगाई गई है, जो वाल्मीकि नगर के जंगल में पाई जाती है।
बताया जाता है कि वाल्मीकि नगर अभ्यारण्य और नेपाल का खुला क्षेत्र होने के कारण नेपाल के नेशनल पार्क से भी गैंडों को वाल्मीकि नगर की तरफ आना रहता है। नेपाल से भटके कई गैंडे वाल्मीकि नगर में अपना अधिवास बना लेते हैं। यहां आपको बता दें कि पटना चिड़ियाघर में फिलहाल 11 गैंडे हैं और संख्या की दृष्टि से देश में इसका पहला स्थान है।
गौरतलब है कि पटना चिड़ियाघर में असम से 20 मई 1979 को पहली बार एक जोड़ा भारतीय गैंडा लाया गया था। उसका नाम कांछा व कांछी रखा गया था। 28 मार्च 1982 को बेतिया से एक गैंडा यहां लाया गया। जुलाई 1988 में एक मादा गैंडे का जन्म हुआ। आठ जुलाई 1991 को कांछी ने एक और मादा गैंडे का जन्म दिया। 1991 में गैंडों की संख्या पांच हो गई थी। 1993 में कांछा पिता बना और कांछी ने तीसरे बच्चे के रूप में एक नर गैंडे का जन्म दिया। 1988 में जन्मी हड़ताली ने 1997 में नर गैंडे को जन्म दिया। एक अधिकारी के मुताबिक, वर्ष 2012 तक हड़ताली ने कुल आठ बच्चों को जन्म दिया। अब तक यहां से अमेरिका के सेंट डियागो चिड़ियाघर, दिल्ली चिडियाघर, कानपुर, रांची, हैदराबाद को गैंडा दिया जा चुका है।