वे कौन से मतदाता वर्ग हैं जिन्होंने यह फैसला किया कि भाजपा फिर से सत्ता में ना आए? जनगणना डेटा और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के आंकड़ों का एक साथ आकलन करने पर तीन संभवत: जनसांख्यिकीय ( Demographics ) फैक्टर्स ( तीन विशेष मतदाता वर्ग ) सामने आए जिन्होंने BJP का विजय रथ रोकने में अहम रोल अदा किया। वे फैक्टर्स (मतदाता वर्ग) हैं, ग्रामीण-शहरी आबादी, कृषि*-गैर कृषि* आबादी और एससी/एसटी आबादी का वोट शेयर। भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर की तुलना करने पर पता चलता है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में इस मतदाता वर्ग ने कांग्रेस को फायदा पहुंचा है। यानी विपक्ष की एकजुटता ही नहीं बल्कि मतदाताओं ने भी अपना दमखम दिखाया।
भाजपा की हार पर बोले रामदेव, पीएम मोदी के नेतृत्व पर कोई सवाल खड़ा नहीं कर सकता आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद पता चलता है कि भाजपा शहरी और ग्रामीण मतदाता; किसान और गैर किसानों; और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के समुदायों का वोट खो रही है। इन तीन वर्गों में 2013 से 2018 के आकंड़ों की तुलना किया गया तो भाजपा का वोट शेयर घटने की बात सामने है।
नतीजे भाजपा के माथे पर शिकन ले आए हैं। गुजरात में भी किसानों ने अहम रोल अदा किया, लेकिन भाजपा बड़े पैमाने पर शहरी वोट बैंक पाने में सफल रही और राज्य का चुनाव जीता। जबकि हिंदी बेल्ट में अभी भी अधिकांश मतदाता कृषि से जुड़े हुए हैं। ऐसे में राजनैतिक दल बिना किसान समुदाय के समर्थन के इन राज्यों में जीतने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। भाजपा के लिए चिंता की बात यह है कि उनके समर्थन शहरी क्षेत्रों में फैल चुका है। इससे पता चल रहा है कि भाजपा जनसांख्यिकी समूहों में कटौती कर रही है। इन आकंड़ों को देखकर लगता है कि अगर भाजपा को 2019 में सत्ता पर काबिज होना है तो उसे इस ओर ध्यान देने की जरुरत है।