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भारतीय वैज्ञानिकों ने किया चमत्कार, 1300 करोड़ का प्रोजेक्ट 11 करोड़ में तैयार

Published: Dec 29, 2017 09:12:35 pm

Submitted by:

Chandra Prakash

भारतीय वैज्ञानिकों ने किया चमत्कार, 1300 करोड़ के प्रोजेक्ट का 11 करोड़ में हो गया ट्रायल,ऐतिहासिक रहा परीक्षण

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बेंगलूरु। वायुसेना के अग्रिम पंक्ति के लड़ाकू विमान सुखोई-30 एमकेआई से सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस दागने का सफल परीक्षण ऐतिहासिक रहा मगर कम ही लोग जानते हैं कि इस सफलता में देश की एक अग्रणी प्रयोगशाला ने कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह प्रयोगशाला नेशनल एयरोनॉटिक्स लेबोरेटरीज (एनएएल) है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की बेंगलूरु स्थित इस अग्रणी प्रयोगशाला ने वर्ष 2013-14 के दौरान सुखोई में ब्रह्मोस के इंटीग्रेशन से पहले बेहद निर्णायक विंड टनल टेस्ट श्रृंखला को अंजाम दिया।

1300 करोड़ रुपए से अधिक की मांग
यह बेहद चौंकाने वाली बात है कि इस विंड टनल टेस्ट श्रृंखला को पूरा करने के लिए रूस ने एक तरह से आसमान से तारे लाने की मांग कर दी थी। रूस ने इस टेस्ट के लिए जो कोटेशन दिया था, उसमें 1300 करोड़ रुपए से अधिक की मांग की गई थी। ऊपर से वे तकनीकी हस्तांतरण के लिए भी तैयार नहीं थे। सैन्य सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की कि परीक्षणों की इस श्रृंखला को पूरा करने के लिए रूस ने इतनी बड़ी रकम मांगी थी।

भारत विश्व का पहला देश
दरअसल, यह परीक्षण रूस के लिए भी नया था क्योंकि भारत विश्व का पहला ऐसा देश है जिसने एक युद्धक विमान में क्रूज मिसाइल का इंटीग्रेशन किया है। तब भारतीय टीम जिसमें ब्रह्मोस, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और भारतीय वायुसेना के सदस्य थे, एनएएल का रुख किए। राष्ट्रीय सैन्य एवं अंतरिक्ष अभियानों के लिए विंड टनल टेस्ट को अंजाम देने वाली प्रयोगशाला एनएएल ने उस चुनौती को स्वीकार किया और लगभग 120 गुणा कम लागत में विंड टनल टेस्ट की सीरिज पूरी की।

बम आदि गिराने का पहला अनुभव
एनएएल के लिए भी अपने विंड टनल में सुखोई युद्धक जैसे एक बड़े विमान से ड्रॉप टेस्ट (बम आदि गिराने) का यह पहला अनुभव था। एनएएल के 1.5 मीटर लो स्पीड विंड टनल में मैक 0.3 की न्यूनतम गति पर भी वैज्ञानिकों ने इस महत्वपूर्ण परीक्षण को पूरा किया। इसके लिए एनएएल के नेशनल ट्राइसोनिक एयरोडायनेमिक केंद्र में सुखोई-30 एमकेआई युद्धक का एक मॉडल रिकॉर्ड समय में डिजाइन और तैयार किया गया। ट्राइसोनिक विंड टनल में सब सोनिक (ध्वनि की गति से कम), ट्रांसोनिक (ध्वनि की गति या उसका 0.8 गुणा) और सुपरसोनिक (ध्वनि की गति से 1.2 से 5 गुणा अधिक) स्पीड रेंज में उड़ान परीक्षण संभव है।

सटीक आंकड़े मिल गए
एनएएल में परीक्षण से ब्रह्मोस दागने के समय विमान की उड़ान गति और विमान के विचलन कोण को समायोजित करने के लिए अहम आंकड़े मिले। इस दौरान विमान के सामने और पिछले हिस्से का कोणीय झुकाव कितना होना चाहिए इसके बारे में भी सटीक आंकड़े मिल गए। एनएएल ने लो स्पीड और हाई स्पीड विंड टनल टेस्ट के लिए सुखोई और ब्रह्मोस मिसाइल के उचित मॉडल का उपयोग किया। एयरोडायनेमिक लोड (वायुगतिकी भार) का निर्धारण 2 फीट विंड टनल और फिर 4 फीट विंड टनल में परीक्षणों के बाद किया गया। इसमें 0.55 मैक से 1.2 मैक की गति पर हमले के लिए विभिन्न कोणों का निर्धारण किया गया।

‘ड्रॉप टेस्ट’ का परीक्षण
भारत में पहली बार ऐसा हुआ जब एनएएल के एक्सपेरिमेंटल एयरोडायनेमिक्स डिविजन में बेहद जटिल ‘ड्रॉप टेस्ट’ का परीक्षण किया गया। इस परीक्षण के दौरान विंड टनल में मिसाइल को विमान से दागा जाता है और इस दौरान विमान की ऊंचाई, गति, मिसाइल दागने के कोण, उसका पथ आदि का विश्लेषण कर उसका निर्धारण होता है। सुखोई में ब्रह्मोस के इंटीग्रेशन से पहले बह्मोस सेपरेशन ट्रायल की मंजूरी आवश्यक था जो इस परीक्षण के बाद मिल गया। जब 22 नवंबर 2017 को विंग कमांडर प्रशांत नायर ने कलाइकुंडा वायुसेना केंद्र से सुखोई में उड़ान भरी और बह्मोस मिसाइल से लक्ष्य भेद कर लौटे तो उन आंकड़ों का मिलान एनएएल के परीक्षण से किया गया। एनएएल के परीक्षण से मिले आंकड़े इतने सटीक निकले कि रूसी वैज्ञानिक भी चौंक गए।

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