2010 में बनी थी दिल्ली टावर पोलिसी
बता दें कि टीएआईपीए ने कहा है कि 48 करोड़ रुपए जमा होने के बावजूद एमसीडी ने 566 टावरों को सील कर दिया गया है। टीएआईपीए ने बताया कि एमसीडी इज ऑफ डूईंग बिजनेस, मजबूत दूरसंचार, बुनियादी ढ़ांचे का विकास और ग्राहकों की बढ़ती डेटा मांग को प्रभावित करती है। टीएआईपीए के महानिदेशक तिलक राज दुआ ने बताया कि हमने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए ऐसे कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा कि एमसीडी और टेलिकोम सेक्टर के बीच टावर को लगाने और सेवा देने के लिए ग्राहकों से चार्ज वसूलने के संबंध में एक-दूसरे से प्रतियोगिता कर रहे है। हालांकि उन्होंने कहा कि इस संबंध में टीएआईपी ने एमसीडी के साथ कई दौर की बैठकें की है लेकिन पीछले 8 सालों से अबतक यह इंडस्ट्री इसे फेस कर रही है।
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बता दें कि 2010 में बनें दिल्ली टावर पोलिसी को टेलिकॉम उद्योग ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी है जिसमें अत्यधिक अनुमति शुल्क लेने का मामला बताया गया है। कहा गया है कि 5 साल के लिए 5 लाख रुपए और प्रति सर्विस प्रदाता को एक लाख रुपए की देने की बात की गई है।
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