हालांकि सीबीआई अधिकारियों के बीच केस को लेकर मतभेद होना कोई नई बात नहीं है। लेकिन इस बार शीर्ष स्तर पर जिस तरह से मतभेद उभरकर सामने आए हैं उससे इस संस्था के समक्ष प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। पूर्व सीबीआई अधिकारी और शासन व प्रशासन के विश्लेषकों को भी मानना है कि जो हो रहा है उससे जांच एजेंसी की छवि और भी धूमिल हो जाएगी। इस क्रम को तत्काल नहीं रोका गया तो इसे फिर से पटरी पर लाने में वर्षों लग जाएगा। इससे अन्य संवैधानिक संस्थानों पर असर पड़ सकता है। क्योंकि सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा द्वारा राकेश अस्थाना के खिलाफ रिश्वत मामले में एफआईआर दर्ज कराते ही आपस में आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला चल पड़ा है। अस्थाना ने अपने ऊपर बढ़े दबाव को कम करने के लिए वर्मा पर दो करोड़ रुपए रिश्वत लेने का आरोप लगा दिया। इसके बाद जिस तरह से 23 अक्टूबर को सीबीआई में दोनों शीर्ष अधिकारियों को छुट्टी पर भेजकर के नागेश्वर राव को प्रमुख बनाया गया और कुछ ही घंटे के अंदर बड़े पैमाने पर जांच अधिकारियों के तबादले हुए उससे यह मामला और गहरा गया।
इस फेरबदल के बाद जैसे ही के नागेश्वर राव ने जिस तरह से बड़े पैमाने पर अधिकारियों के तबादले किए उससे अधिकारियों में बड़े पैमाने पर असंतोष है। इसका परिणाम यह निकला कि सीबीआई अधिकारियों ने ही अपने वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ आवाज बुलंद कर दिए हैं। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने वर्मा और अस्थाना की याचिका पर विचार करते हुए जांच बैठा दी और राव के कामकाज को रुटीन मामले तक सीमित कर दिया। लेकिन यह मामला यही नहीं थमा। पोर्ट ब्लेयर तबादले से नाराज और राकेश अस्थाना मामले की जांच से जुड़े डीएसपी एके बस्सी अपने तबादले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे चुके हैं। सोमवार को डीआईजी मनीष सिन्हा ने अपने तबादले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इतना ही नहीं उन्होंने मोदी सरकार में एक मंत्री, एनएसए प्रमुख अजीत डोभाल और वरिष्ठ नौकरशाहों को घसीट लिया है। इससे आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला और तेज हो गया है। इस बात की संभावना भी बढ़ गई है कि सीबीआई के अन्य अधिकारी पर अपना मुंह खोल सीबीआई की गैर कानूनी करतूत पर से पर्दा उठा सकते हैं।