देश भर की जांच एजेंसियों की अपराधियों तक आसान पहुंच के लिए सभी पुलिस स्टेशनों को सीसीटीएनएस से जोड़े जाने की योजना है। इसमें फिंगरप्रिंट-आइरिस स्कैन डाटाबेस शामिल होगा।
नई दिल्ली। जहां यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) ने कहा था कि वो आधार डाटा का इस्तेमाल आपराधिक जांच के लिए नहीं करेगा, वहीं गृह मंत्रालय इस इस प्रस्ताव पर काम कर रहा है कि वो देश भर में फिंगरप्रिंट इकट्ठे करके अपने महात्वाकांक्षी क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम (सीसीटीएनएस) से जोड़ दे। इस प्रस्ताव में फेस रिकगनिशन सिस्टम और आइरिस स्कैन को भी सीसीटीएनएस से जोड़ने का प्रावधान है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, “योजना के पीछे विचार यह है कि फिंगरप्रिंट डाटाबेस, फेस रिकगनिशन सॉफ्टवेयर और आइरिस स्कैन, पुलिस विभाग की अपराध जांच क्षमता को काफी ज्यादा बढ़ा देगी। यह जरूरत के वक्त नागरिक सत्यापन में भी मददगार होगी। कोई भी व्यक्ति फर्जी पहचान पत्र के जरिये भाग नहीं सकेगा।”
हाल ही में यूआईडीएआई ने आधार कानून के तहत एक बयान जारी किया था, जिसमें लिखा था कि इसका डाटा किसी भी आपराधिक जांच एजेंसी को नहीं सौंपा जाएगा। यूआईडीएआई की यह प्रतिक्रिया नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के निदेशक ईश कुमार द्वारा दिए गए बयान के बाद आई थी, जिसमें कुमार ने कहा था कि आधार फिंगरप्रिंट डाटा तक जांच एजेंसियों की पहुंच होनी चाहिए, जिससे अपराधियों को पहचाना जा सके। सीसीटीएनएस लागू करने केे लिए एनसीआरबी को नोडल एजेंसी बनाया गया है।
सीसीटीएनएस एक प्रकार का केंद्रीय एकीकृत डाटाबेस होगा, जिसमें देशव्यापी आपराधिक मामलों और अपराधियों का रिकॉर्ड होगा। इसका मकसद देश भर के सभी पुलिस स्टेशनों को हर अपराधी और आपराधिक डाटा के साथ कनेक्ट करने का है, जिसमें जानकारी पाने के लिए सेंट्रल डाटाबेस में रीयल टाइम एक्सेस किया जा सकेगा।
सीसीटीएनएस का पहला चरण तकरीबन पूरा होने वाला है। देश भर के 15,500 में से 14,500 पुलिस स्टेशनों को जोड़ दिया गया है। तमाम प्रशासनिक कारणों के चलते बिहार ही केवल ऐसा राज्य है जो इसमें पीछे रह गया है। यहां तकरीबन 850 पुलिस स्टेशन हैं, जिन्हें जोड़ा जाना बाकी है।
वहीं, इसके दूसरे चरण में गृह मंत्रालय की योजना सेंट्रल फिंगर डाटाबेस प्रिंट ब्यूरो (सीएफपीबी) और एनआईएसटी फिंगरप्रिंट इमेज सॉफ्टवेयर (एनएफआईएस) में स्टोर फिंगरप्रिंट डाटा को जोड़ने की है। एनएफआईएस एक ऐसी तकनीक है जिसका इस्तेमाल फिंगरप्रिंट्स के मिलान के लिए फेडरल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेशन (अमरीकी जांच एजेंसी) करती है।
फिलहाल सीएफपीबी फिंगरप्रिंट्स मिलान के लिए ऑटोमेटेड फिंगरप्रिंट आइडेंटिफिकेशन सिस्टम (एएफआईएस) का इस्तेमाल करती है। सूत्रों की मानें तो यह तकनीकी अब पुरानी हो चुकी है और आपराधिक जांच के लिए फिंगरप्रिंट डाटा का जमकर इस्तेमाल करने वाली एफबीआई काफी पहले ही ऐसी तकनीकी को अलविदा कह चुकी है।
इसके अलावा सरकार डाटा कलेक्शन में भी तेजी लाने पर काम कर रही है। जहां एफबीआई के पास मौजूद डाटाबेस में 4 करोड़ से ज्यादा फिंगरप्रिंट्स मौजूद हैं, सीएफपीबी के पास फिलहाल 10 लाख से ही ज्यादा फिंगरप्रिंट्स मौजूद हैं। गृह मंत्रालय स्टेट फिंगरप्रिंट ब्यूरो में स्टोर डाटा से इसे जोड़कर 30 लाख तक पहुंचाना चाहती है। योजना है कि देश भर के सभी आपराधिक घटनास्थलों से से मिलने वाला डाटा स्टोर किया जाए। सालाना करीब 50 लाख मुकदमे दर्ज होते हैं। सूत्रों के मुताबिक नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर इन्हें एक साथ जोड़ने के लिए क्लाउड बनाने पर काम कर रही है।