सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केंद्र ने सोमवार को रफाल सौदे में निर्णय प्रक्रिया और ऑफसेट साझेदार से जुड़ी जानकारी याचिकाकर्ताओं को सौंप दी।
Rafael Deal Audit CAG
नई दिल्ली।सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केंद्र ने सोमवार को रफाल सौदे में निर्णय प्रक्रिया और ऑफसेट साझेदार से जुड़ी जानकारी याचिकाकर्ताओं को सौंप दी। कुल 16 पेजों में दी गई जानकारी के अनुसार मोदी सरकार के ताजा सौदे के तहत खरीदे जा रहे 36 रफाल विमान व उसके हथियार यूपीए सरकार में तय हुए विमानों जैसे ही हैं। अब तक सरकार इसे पहले से उन्नत व गोपनीय बताती आई थी।
याचिकाकर्ताओं को दी गई कॉपी (जानकारी) के 21 वें बिंदु में 10 अप्रैल, 2015 को जारी भारत व फ्रांस के साझा वक्तव्य का जिक्र है। इसके मुताबिक, ‘नाजुक स्थित के चलते भारत सरकार ने यथाशीघ्र उड़ने को तैयार 36 रफाल विमानों की जरूरत बताई है। इनकी आपूर्ति समयबद्ध तरीके से होगी। साथ ही विमान, उससे जुड़ी प्रणालियां और हथियार ठीक वैसे ही होंगे जिन्हें परीक्षण के बाद भारतीय वायुसेना अनुमोदित कर चुकी है।’
राफेल-रफाल, दस्सू-डेसॉल्ट, होलैंड-ओलांद, जानिए क्या हैं सही नाम दस्तावेज के 14 वें बिंदु के मुताबिक जनवरी 2012 तक सभी परीक्षणों और प्रक्रियाओं के बाद रफाल विमानों के लिए दस्सू से सौदा कर लिया गया था। दस्तावेज में दी जानकारी के अनुसार अप्रैल 2008 में बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमानों की आपूर्ति के लिए छह कंपनियों ने प्रस्ताव भेजे थे।
इन कंपनियों के विमानों के जुलाई 2009 से मई 2010 के बीच फील्ड ट्रायल हुए। अप्रैल 2011 में रफाल और यूरोफाइटर परीक्षण (फील्ड इवैल्युएशन ) में पास घोषित किए गए। नवंबर, 2011 में व्यावसायिक बोली के बाद दस्सू को जनवरी 2012 में सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी (एल वन) निर्धारित कर दिया गया। यानी ताजा सौदे के लिए चुने गए रफाल में ऐसा कुछ भी नया नहीं जिसे गोपनीय रखने के नाम पर बताया न जा सके।
कीमत बढ़ने के लिए सौदे में देरी को जिम्मेदार बताया सरकार के अनुसार तीन वर्षों तक सौदा लटके रहने से खरीद की कीमत बढ़ गई, क्योंकि सौदे में समय के साथ दाम बढ़ने का प्रावधान शामिल था। वहीं, यूरो के मुकाबले रुपए के दाम ने भी सौदे की कीमत पर असर डाला।
सौदे से पहले ली गई सीसीएस की अनुमति केंद्र के अनुसार जब भारतीय वार्ताकारों ने 4 अगस्त 2016 को 36 रफाल जेट से जुड़ी रिपोर्ट पेश की, तो इसका वित्त और कानून मंत्रालय ने भी आकलन किया। रक्षा खरीद परिषद के बाद रक्षा मामले की कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने 24 अगस्त 2016 को इसे मंजूरी दी। इसके बाद भारत-फ्रांस के बीच समझौते को 23 सितंबर 2016 को अंजाम दिया गया।
ऑफसेट साझेदार चुनने में कोई भूमिका नहीं सरकार के अनुसार सौदे में हमने किसी भी भारतीय कारोबारी समूह का जिक्र नहीं किया था। ऑफसेट साझेदार चुनना दो कंपनियों के बीच का कारोबारी फैसला है। ऑफसेट साझेदार चुनने में भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं। यह दस्सू एविएशन (ऑरिजनल इक्विपमेंट मैनुफैक्चरर, ओईएम) का फैसला था। अभी तक भारतीय ऑफसेट साझेदार को कोई रकम नहीं दी गई है।
सीलबंद रिपोर्ट में कीमत की जानकारी सौदे के लेकर केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट दाखिल की है। बताया जा रहा है कि इस रिपोर्ट में रफाल विमानों की कीमतों की भी जानकारी है।
इससे पहले 10 अक्टूबर को एमएल शर्मा और विनीत ढांडा की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से रफाल सौदे में निर्णय प्रक्रिया के बारे में जानकारी देने को कहा था। तब अदालत ने स्पष्ट किया था कि हमें रफाल के दाम के बारे में कोई जानकारियां नहीं चाहिए। इसके बाद 31 अक्टूबर को पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा, प्रशांत भूषण और अरुण शौरी की संयुक्त याचिका (सौदे में भ्रष्टाचार के आरोपों पर कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच की मांग) पर सुनवाई करते हुए अदालत ने याचिकाकर्ताओं को निर्णय प्रक्रिया की जानकारी देने के अलावा बंद लिफाफे में रफाल की कीमत के बारे में भी जानकारी देने को कहा था।
यह कहती रही सरकार केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 22 सितंबर को कहा कि रफाल की हथियार प्रणाली बताने की मांग कर राहुल गांधी दुश्मन के हाथों खेल रहे हैं। सरकार अब तक अमूमन यही रुख रहा है।
एक साल में 74 बैठकों के बाद हुआ सौदा केंद्र सरकार दस्तावेज में कहा गया है कि 36 रफाल की खरीद में सभी प्रकियाओं का पालन किया गया। सरकार का कहना है कि सौदे के लिए 2013 की रक्षा खरीद प्रक्रिया का अनुसरण किया गया। मई 2015 से अप्रैल 2016 के बीच 74 बैठकें हुईं।
126 विमानों का सौदा रद्द करने का ठीकरा एचएएल के सिर फोड़ा केंद्र सरकार ने 126 लड़ाकू विमानों का पहला सौदा रद्द करने का ठीकरा हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के सिर फोड़ दिया है। याचिकाकर्ताओं को सौंपे दस्तावेज के 16 वें बिन्दु के अनुसार भारत में 108 विमानों की बनाने का मुद्दा दस्सू और एचएएल के बीच फंस गया था। एचएएल को भारत में विमान बनाने के लिए दस्सू के मुकाबले 2.7 गुना ज्यादा वक्त (मैन ऑवर्स) चाहिए था।
एचएएल में बनने वाले विमानों की जिम्मेदारी को लेकर भी दोनों कंपनियों में सहमति नहीं थी। विवाद के चलते सौदा 3 वर्षों (अप्रैल 2015) तक लटका रहा है। इस दौरान हमारे दुश्मन देशों ने 400 लड़ाकू विमान अपने बेड़ों में शामिल कर लिए। ऐसे गंभीर हालात में पुराने सौदे की जगह उडऩे को तैयार 36 विमानों का सौदा किया गया।