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चंद्रयान-2: ऑर्बिटर ने किया एक और कमाल, हर सैटेलाइट को पीछे कर हासिल की बड़ी सफलता

चंद्रमा की सतह की संरचना और सूरज की गतिविधियों का लगाया पता।
अब तक मौजूद किसी भी सैटेलाइट से ज्यादा बेहतर डाटा हासिल किया।
ऑर्बिटर के दो पेलोड चंद्रमा और सूरज का कर रहें हैं गहन अध्ययन।

बेंगलूरु। चंद्रयान-2 मिशन में भले ही विक्रम लैंडर से अब तक संपर्क न हो सका हो, लेकिन ऑर्बिटर अपना काम बखूबी कर रहा है। बृहस्पतिवार रात को इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) ने चंद्रयान-2 ऑर्बिटर द्वारा हासिल की गई नई कामयाबी के बारे में जानकारी दी। इसरो ने बताया कि चंद्रयान-2 ऑर्बिटर ने अब सूर्य की चमक को लेकर नया खुलासा किया है।
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चंद्रयान-2 ऑर्बिटर ने चंद्रमा की सतह पर तत्वों का अध्ययन करने के लिए बेहद चतुराई से सूर्य द्वारा उत्सर्जित एक्स-रे का इस्तेमाल किया है। सूरज की एक्स-रे चंद्रमा की सतह पर घटक तत्वों के परमाणुओं को जगाते (excite) हैं।
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ये परमाणु जब डी-एक्साइटेड किए जाते हैं तब ये अपने गुण वाली एक्स-रे (प्रत्येक परमाणु का एक फिंगरप्रिंट) का उत्सर्जन करते हैं। इन विशिष्ट गुणों वाली एक्स-रे का पता चलने से, चंद्रमा की सतह पर मौजूद प्रमुख तत्वों की पहचान करना संभव हो जाता है।
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हालांकि, इन तत्वों की तादाद कितनी है, यह निर्धारित करने के लिए उसी वक्त सूरज की एक्स-रे स्पेक्ट्रम की जानकारी होना भी जरूरी है।
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इस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए चंद्रयान-2 ऑर्बिटर चंद्रमा की मौलिक संरचना को मापने के लिए दो उपकरणों को ले गया है। इनमें चंद्रयान-2 लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (CLASS) और सोलर एक्स-रे मॉनिटर (XSM) शामिल है।
जहां CLASS पेलोड चंद्रमा की सतह पर संबंधित गुणों वाली पंक्ति का पता लगाता है, इसी दौरान XSM पेलोड सूरज के एक्स-रे स्पेक्ट्रम की माप करता है।

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फिलहाल सौर चक्र (सोलर साइकिल) मीनिमा की ओर बढ़ रहा है और सूर्य पिछले कुछ महीनों से बेहद शांत है। बीते 30 सितंबर 2019 को 00:00 बजे से लेकर 1 अक्टूबर 2019 के 23:59 बजे (अंतरराष्ट्रीय मानक समय UTC) तक XSM ने छोटी-छोटी चमक की एक श्रृंखला देखी।
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ऊपर दी गई तस्वीर इस वक्त (30 सितंबर से 1 अक्टूबर) के दौरान XSM (नीले रंग में) द्वारा मापी गई सूरज के एक्स-रे प्रवाह को दिखाती है। और इसकी तुलना के लिए जियोस्टेशनरी ऑपरेशनल एनवायरनमेंटल सैटेलाइट (GOES-15) के एक्स-रे सेंसर द्वारा मापे गए प्रवाह को भी नारंगी रंग में दिखाया गया है। GOES-15 को सूरज की एक्स-रे तीव्रता मापने के लिए मानक माना जाता है।
इस तस्वीर (ग्राफ) से पता चलता है कि XSM सूर्य की तीव्रता में होने वाले उतार-चढ़ाव का पता लगाने में GOES की संवेदनशीलता सीमा से काफी ज्यादा सक्षम है। GOES का डाटा अमरीका के नेशनल सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल इंफॉर्मेशन ऑफ नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन से प्राप्त किया गया था।
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बेहतर संवेदनशीलता के अलावा XSM सौर एक्स-रे के स्पेक्ट्रम को 1-15 KeV की ऊर्जा रेंज में मापता है, जो अब तक किसी भी ब्रॉडबैंड सौर एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर के लिए सबसे ज्यादा एनर्जी रिजोल्यूशन के साथ 1 सेकंड से कम के अंतराल में मापता है।
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हालांकि यह सोलर फ्लेयर चंद्रमा की सतह की संरचना के अध्ययन के लिए काम नहीं कर सकता है, क्योंकि सूर्य, चंद्रमा की सतह और चंद्रयान-2 के बीच बड़े कोण (एंगल) का अंतर है। लेकिन XSM के यह अध्ययन सूर्य पर होने वाली तमाम गतिविधियों को समझने के लिए बहुत उपयोगी डाटा प्रदान करते हैं।
क्या है सूरज की चमक (सोलर फ्लेयर)

सूरज की सतह और कोरोना (सूरज का वातावरण) पर हर वक्त तेज घटनाएं (विस्फोट) होते रहते हैं। सूरज की सतह पर होने वाली यह गतिविधि 11 वर्षों के चक्र (सोलर साइकिल) में होती है। इसका मतलब हर 11 साल में यह गतिविधि ‘सोलर मैक्सिमा’ से ‘सोलर मिनिमा’ से गुजरती है।
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सोलर साइकिल के हिसाब से ही एक वर्ष में उत्सर्जित होने वाली सूरज की एक्स-रे किरणों का संचयी उत्सर्जन बदलता रहता है। ये अक्सर बहुत कम समय यानी कुछ मिनटों से लेकर घंटों तक बहुत बड़ी तीव्रता वाली एक्स-रे में बदलती रहती हैं, जिन्हें सोलर फ्लेयर्स के रूप में जाना जाता है।

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