सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अधिकारों के सिद्धांत का हवाला देते हुआ कहा कि अदालतों को लक्ष्मण रेखा नहीं लांघनी चाहिए। न ही कानून बनाने के संसद के अधिकार के दायरे में नहीं जाना चाहिए। यह लक्ष्मण रेखा उस सीमा तक है कि हम कानून घोषित करते हैं। हमें कानून नहीं बनाने हैं, यह संसद का विधायी अधिकार क्षेत्र है, जिसमें शीर्ष अदलात को दखल देने की जरूरत नहीं है।
इस मुद्दे पर दूसरे दिन की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार पक्ष रखते हुए अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इन याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि यह विषय पूरी तरह संसद के अधिकार क्षेत्र का है और यह एक अवधारणा है कि दोषी ठहराए जाने तक व्यक्ति को निर्दोष माना जाता है। इस पर पीठ ने मंत्रियों द्वारा ली जाने वाली शपथ से संबंधित सांविधान के प्रावधान का हवाला दिया और जानना चाहा कि क्या हत्या के आरोप का सामना करने वाला संविधान के प्रति निष्ठा बनाए रखने की शपथ ले सकता है। वेणुगोपाल ने कहा कि शपथ में ऐसा कुछ नहीं है जो यह सिद्ध कर सके कि आपराधिक मामले का सामना कर रहा व्यक्ति संविधान के प्रति निष्ठा नहीं रखेगा और इतना ही नहीं, संविधान में निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के प्रावधान हैं और दोषी साबित होने तक एक व्यक्ति को निर्दोष माना जाता है।
गैरसरकारी संगठन पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन की ओर से अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी ने कहा कि 2014 में संसद में 34 प्रतिशत सांसद आपराधिक पृष्ठभूमि वाले थे। यह पूरी तरह असंभव है कि संसद राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए कोई कानून बनाएगी। भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय ने भी चुनाव सुधारों और राजनीति को अपराधीकरण और सांप्रदायीकरण से मुक्त करने का निर्देश देने के आग्रह के एक याचिका दायर कर रखी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि राजनीति के अपराधीकरण के मुद्दे पर शीर्ष अदालत को ही विचार करना चाहिए।