बीसीडी के 51,000 मतदाता
देश भर में करीब 17 लाख वकील बार काउंसिल ऑफ इंडिया से जुड़े हैं। दिल्ली बार काउंसिल में 60 हजार वकील जुड़े हैं। बीसीडी देश की सबसे बड़ी बार काउंसिल है। इसका चुनाव 16 और 17 मार्च को होगा। इस बार 51 हजार वकील ही मताधिकार के अधिकार प्रयोग कर पाएंगे। शेष नौ हजार वकील फर्जी सर्टिफिकेट, समय पर बीसीडी को जरूरी प्रमाण पत्र मुहैया नहीं कराने व समय से वेरिफिकेशन न होने के कारण वोट नहीं डाल पाएंगे। ऐसा इसलिए कि उनका नाम मतदाता सूची में नाम दर्ज नहीं है। आपको बता दूं कि दिल्ली के जिला अदालतों सहित दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी प्रैक्टिस करने के लिए बीसीडी का मेम्बर होना अनिवार्य है। इसके बिना कोई भी वकील हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत नहीं कर सकता। यानि बीसीडी दिल्ली के किसी भी कोर्ट में वकालत करने के लिए वकीलों को पंजीकृत करने वाली संस्था है।
देश भर में करीब 17 लाख वकील बार काउंसिल ऑफ इंडिया से जुड़े हैं। दिल्ली बार काउंसिल में 60 हजार वकील जुड़े हैं। बीसीडी देश की सबसे बड़ी बार काउंसिल है। इसका चुनाव 16 और 17 मार्च को होगा। इस बार 51 हजार वकील ही मताधिकार के अधिकार प्रयोग कर पाएंगे। शेष नौ हजार वकील फर्जी सर्टिफिकेट, समय पर बीसीडी को जरूरी प्रमाण पत्र मुहैया नहीं कराने व समय से वेरिफिकेशन न होने के कारण वोट नहीं डाल पाएंगे। ऐसा इसलिए कि उनका नाम मतदाता सूची में नाम दर्ज नहीं है। आपको बता दूं कि दिल्ली के जिला अदालतों सहित दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी प्रैक्टिस करने के लिए बीसीडी का मेम्बर होना अनिवार्य है। इसके बिना कोई भी वकील हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत नहीं कर सकता। यानि बीसीडी दिल्ली के किसी भी कोर्ट में वकालत करने के लिए वकीलों को पंजीकृत करने वाली संस्था है।
इस बार केवल हाईकोर्ट में मतदान केन्द्र
बीसीडी के चुनाव में हजारों वकील हाईकोर्ट और तीस हजारी में अभी तक मतदान करते आए हैं। नई व्यवस्था के इस बार केवल दिल्ली हाईकोर्ट में मतदान डालने की व्यवस्था है। यह कदम अनियमितताओं की वजह से उठाया गया है। इस बार बीसीडी के 25 सदस्यों का चुनाव करने के लिए 16 और 17 मार्च को मतदान होगा। हालांकि वकीलों की सुविधा को देखते हुए शोभा गुप्ता, राजेश सचदेवा सहित दर्जनों वकीलों ने दिल्ली जिला अदालतों में मतदान कराने की मांग की थी। लेकिन सभी यचिकाओं को खारिज कर दिया गया। इसलिए अब बीसीडी के सभी मतदाताओं को दिल्ली हाईकोर्ट में ही मतदान करना होगा।
बीसीडी के चुनाव में हजारों वकील हाईकोर्ट और तीस हजारी में अभी तक मतदान करते आए हैं। नई व्यवस्था के इस बार केवल दिल्ली हाईकोर्ट में मतदान डालने की व्यवस्था है। यह कदम अनियमितताओं की वजह से उठाया गया है। इस बार बीसीडी के 25 सदस्यों का चुनाव करने के लिए 16 और 17 मार्च को मतदान होगा। हालांकि वकीलों की सुविधा को देखते हुए शोभा गुप्ता, राजेश सचदेवा सहित दर्जनों वकीलों ने दिल्ली जिला अदालतों में मतदान कराने की मांग की थी। लेकिन सभी यचिकाओं को खारिज कर दिया गया। इसलिए अब बीसीडी के सभी मतदाताओं को दिल्ली हाईकोर्ट में ही मतदान करना होगा।
9 साल बाद बीसीडी का चुनाव क्यों?
दिल्ली हाईकोर्ट के वकील संजय अग्रवाल का कहना है कि बीसीडी एक स्वायत्त संस्था है। इसके 25 सदस्यों के लिए चुनाव हर पांच साल में होता है। चुने गए सदस्यों में से एक को इसका चेयरमैन चुना जाता है। चेयरमैन का चुनाव रोटेशन के आधार पर होता है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2013 में फर्जी वकीलों मामला देश भर में उठा था। यह मसला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक व्यवस्था में सुचिता बनाए रखने और फर्जीवाड़े को रोकने के लिए वकीलों का वेरिफिकेशन का आदेश दिया था। इसका मकसद फर्जी डिग्री के आधार पर वकालत करने वाले वकीलों को प्रैक्टिस करने से प्रतिबंधित करना था। तब से लेकर 2017 तक वकीलों के वेरिफिकेशन का काम जारी रहा। अग्रवाल का कहना है कि चुनाव में विलंब वेरिफिकेशन का काम धीमा होने की वजह से हुआ। दूसरा कारण यह है कि इसकी आड़ में 2009 में बीसीडी के सदस्य चुने गए लोग नहीं चाहते थे कि इसका चुनाव जल्द हो। ताकि बीसीडी का नियंत्रण उन्हीं के हाथों में रहे। यही कारण है कि इस बार भी पुराने 25 सदस्यों में 18 सदस्य बीसीडी का चुनाव लड़ रहे हैं। इस बार 25 सदस्यों के लिए 173 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। जान बूझकर चुनाव में विलंब करने का समाधान तब निकला जब वकील अजयेंदर सांगवान ने जल्द चुनाव कराने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। उनके संघर्ष का ही परिणाम है कि सुप्रीम कोर्ट ने उनके हक में फैसला सुनाया और न सिर्फ बीसीडी बल्कि देश के सभी स्टेट बार काउंसिल का चुनाव कराने का आदेश दे दिया। यही कारण है कि इन दिनों अधिकांश राज्यों की बार काउंसिलों में चुनावी प्रक्रिया चरम पर है। उन्होंने कहा कि वेरिफिकेशन की वजह से कुछ फर्जी वकली स्वत: मतदाता सूची से बाहर हो गए और कुछ ने समय से जरूरी दस्तावेज वेरिफिकेशन के लिए जमा नहीं कराया। यही कारण है कि ऐस 9,000 वकीलों को इस बार मतदान करने से रोका गया है। उन्होंने बताया कि चुनाव कराने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर, 2017 को दिया था। दिल्ली बार काउंसिल में 2009 में 40 हजार वकीलों ने हिस्सा लिया था। इस बार 51 हजार वकील मतदान करेंगे। जबकि डीसीबी के वकीलों की संख्या 60,000 है।
दिल्ली हाईकोर्ट के वकील संजय अग्रवाल का कहना है कि बीसीडी एक स्वायत्त संस्था है। इसके 25 सदस्यों के लिए चुनाव हर पांच साल में होता है। चुने गए सदस्यों में से एक को इसका चेयरमैन चुना जाता है। चेयरमैन का चुनाव रोटेशन के आधार पर होता है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2013 में फर्जी वकीलों मामला देश भर में उठा था। यह मसला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक व्यवस्था में सुचिता बनाए रखने और फर्जीवाड़े को रोकने के लिए वकीलों का वेरिफिकेशन का आदेश दिया था। इसका मकसद फर्जी डिग्री के आधार पर वकालत करने वाले वकीलों को प्रैक्टिस करने से प्रतिबंधित करना था। तब से लेकर 2017 तक वकीलों के वेरिफिकेशन का काम जारी रहा। अग्रवाल का कहना है कि चुनाव में विलंब वेरिफिकेशन का काम धीमा होने की वजह से हुआ। दूसरा कारण यह है कि इसकी आड़ में 2009 में बीसीडी के सदस्य चुने गए लोग नहीं चाहते थे कि इसका चुनाव जल्द हो। ताकि बीसीडी का नियंत्रण उन्हीं के हाथों में रहे। यही कारण है कि इस बार भी पुराने 25 सदस्यों में 18 सदस्य बीसीडी का चुनाव लड़ रहे हैं। इस बार 25 सदस्यों के लिए 173 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। जान बूझकर चुनाव में विलंब करने का समाधान तब निकला जब वकील अजयेंदर सांगवान ने जल्द चुनाव कराने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। उनके संघर्ष का ही परिणाम है कि सुप्रीम कोर्ट ने उनके हक में फैसला सुनाया और न सिर्फ बीसीडी बल्कि देश के सभी स्टेट बार काउंसिल का चुनाव कराने का आदेश दे दिया। यही कारण है कि इन दिनों अधिकांश राज्यों की बार काउंसिलों में चुनावी प्रक्रिया चरम पर है। उन्होंने कहा कि वेरिफिकेशन की वजह से कुछ फर्जी वकली स्वत: मतदाता सूची से बाहर हो गए और कुछ ने समय से जरूरी दस्तावेज वेरिफिकेशन के लिए जमा नहीं कराया। यही कारण है कि ऐस 9,000 वकीलों को इस बार मतदान करने से रोका गया है। उन्होंने बताया कि चुनाव कराने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर, 2017 को दिया था। दिल्ली बार काउंसिल में 2009 में 40 हजार वकीलों ने हिस्सा लिया था। इस बार 51 हजार वकील मतदान करेंगे। जबकि डीसीबी के वकीलों की संख्या 60,000 है।
बार काउंसिल स्वायत्त संस्था
आपको बता दें कि बार काउंसिल दिल्ली एक स्वायत्त वैधानिक संस्था है जो अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत गठित की गई है। आज इसके 60,000 से अधिक पंजीकृत सदस्य अधिवक्ता है, जिससे यह देश की सबसे बड़ी बार काउंसिल बनकर उभरी है। काउंसिल का पिछ्ला चुनाव वर्ष 2009 में हुआ था । इसके कुल 51 हजार सदस्य मतदाता है , जो अगामी 16 एवं 17 मार्च को 25 सदस्यों को चुनेंगे । चुनाव के लिए अधिसूचना 24 जनवरी को जारी की गई थी ।
आपको बता दें कि बार काउंसिल दिल्ली एक स्वायत्त वैधानिक संस्था है जो अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत गठित की गई है। आज इसके 60,000 से अधिक पंजीकृत सदस्य अधिवक्ता है, जिससे यह देश की सबसे बड़ी बार काउंसिल बनकर उभरी है। काउंसिल का पिछ्ला चुनाव वर्ष 2009 में हुआ था । इसके कुल 51 हजार सदस्य मतदाता है , जो अगामी 16 एवं 17 मार्च को 25 सदस्यों को चुनेंगे । चुनाव के लिए अधिसूचना 24 जनवरी को जारी की गई थी ।