वैश्विक तापमान में 1 डिग्री की बढ़ोतरी
दक्षिण कोरिया के इंचियोन शहर में पूरे सप्ताह वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने बैठकें की, जिसमें विश्व तापमान को 1.5 डिग्री पर रखने के मार्ग प्रदान करने वाली रिपोर्ट पर सहमति व्यक्त की गई है। ये सिफारिशें नीति निर्माताओं को बिजली, परिवहन, भवनों और कृषि जैसे क्षेत्रों में उत्सर्जन को कम करने के तरीकों पर वैज्ञानिक मार्गदर्शन प्रदान कर सकती हैं ताकि पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री से ज्यादा की वैश्विक तापमान वृद्धि न हो सके। बता दें कि जलवायु परिवर्तन की वजह से वैश्विक तापमान में एक डिग्री वृद्धि पहले ही हो चुकी है।
भारत ग्लोबल वार्मिंग से निपटने में कमजोर
नई दिल्ली स्थित ऊर्जा एवं अनुसंधान संस्थान (टेरी) के महानिदेशक अजय माथुर ने मीडिया से बताया कि भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के प्रति बहुत कमजोर है क्योंकि यहां 7,000 किलोमीटर से अधिक की तटरेखा है और हमारे लोगों की आजीविका हिमालयी हिमनदों और मानसूनी बारिश पर अधिक निर्भर रहता है। उन्होंने कहा, “समय की आवश्यकता है कि व्यापक और तत्काल जलवायु कदमों का समर्थन किया जाए व उन्हें लागू किया जाए और तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे और सीमित रखने के लिए सभी हितधारकों द्वारा ऐसा किए जाने की आवश्यकता है।”
भारत पर जलवायु परिवर्तन का बुरा असर
ब्रिटेन के क्रिस्टेन एड द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, लंदन, ह्यूस्टन, जकार्ता और शंघाई जैसे तटीय शहर को तूफान और बाढ़ का सामना करना पड़ सकता है। अगर ग्लोबल वार्मिग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित नहीं किया गया है तो समुद्र-स्तर में 40 सेंटीमीटर से अधिक की वृद्धि होने की संभावना है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक दुनिया की शहरी आबादी में 59 प्रतिशत की वृद्धि हो जाएगी, जिससे इन शहर के निवासियों के लिए खतरा तेजी से बढ़ जाएगा। पर्यावरण पर आधारित एक पत्रिका में प्रकाशित हालिया रिपोर्ट पर 200 से अधिक देशों की अर्थव्यवस्थाओं की समीक्षा की गई और निष्कर्ष निकाला गया कि जलवायु परिवर्तन का भारत पर सबसे बुरा असर होगा। पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते 2015 पर हस्ताक्षर कर भारत 2030 तक 2005 के स्तर से कार्बन उत्सर्जन तीव्रता को 33 से 35 प्रतिशत कम करने, 2030 तक गैर-जीवाश्म आधारित ऊर्जा संसाधनों की हिस्सेदारी को मौजूदा विद्युत क्षमता के मुकाबले 40 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। क्लाइमेटट्रैकर के मुताबिक, भारत की जलवायु कार्य योजना वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने में मदद करेगी, बशर्ते अन्य देशों को भी इस दिशा में कदम उठाने होंगे।