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EXPERT INTERVIEW : जानिए कैसे…कोरोना की तीसरी लहर को रोक सकता है भारत

एक्सपर्ट कमेंट

भारत में 90 फीसदी संक्रमित लोगों का घर से ही इलाज संभव
3-5 दिन बुखार न उतरे तो चिकित्सक की सलाह से टेस्ट कराएं
बार-बार बाहर निकलने पर संक्रमित करेंगे या संक्रमण घर ले आएंगे
हैवी डोज, एंटीबायोटिक दवाएं मन से न लें, इससे इम्युनिटी घटती
3-4 माह में 60-70 फीसदी युवाओं-बुजुर्गों को वैक्सीनेट किया जाए

जयपुरMay 18, 2021 / 11:48 pm

Ramesh Singh

देश में वायरस की दूसरी लहर पीक पर है। विशेषज्ञ दूसरी लहर के बाद तीसरी लहर के आने की भविष्यवाणी भी कर रहे हैं। इसमें सबसे अधिक बच्चे प्रभावित होंगे? तीसरी लहर की भविष्यवाणी की सच्चाई, कितना घातक होगा वायरस और दूसरी लहर से निकलने जैसे सवालों को लेकर अमरीका के पेंसिलवेनिया में सीनियर इंफेक्शस डिजीज एक्सपर्ट डॉ. जाहिदा भट्टी से पत्रिका से वरिष्ठ संवाददाता रमेश कुमार सिंह की विशेष बातचीत के संपादित अंश…
सवाल : देश में कोरोना की दूसरी वेब पहली से ज्यादा घातक क्यों है?
डॉ. जाहिदा : जब भारत में जनवरी में बहुत कम केस थे तो लोगों व सरकार ने यह मान लिया था कि वायरस चला गया। कोविड प्रोटोकाल की अनदेखी करने लगे। नतीजा यह हुआ कि फरवरी से मार्च में वायरस का तेजी से प्रसार हुआ। जब संक्रमण तेज होता है तो वायरस में म्यूटेशन होता है क्योंकि एक से दूसरे शरीर में पहुंचे वायरस के कॉपी में बदलाव की आशंका ज्यादा होती है। इसीलिए दूसरी लहर में वहां वायरस का नया वैरिएंट तैयार हो गया जो पहले के मुकाबले 20-25 फीसदी ज्यादा संक्रामक है।
सवाल : अभी यहां वायरस की दूसरी लहर का पीक है। ऐसे में किन सावधानियों की जरूरत है?
डॉ. जाहिदा : दरअसल, इस लहर में भी 90 फीसदी लोगों का घर से इलाज संभव है। ये बातें ध्यान रखनी हैं। यदि लक्षण आ रहे हैं तो खुद को आइसोलेट करें और कोविड प्रोटोकाल का पालन करें, लेकिन मन से कोरोना टेस्ट व दवाएं न लें। बुखार 3-5 दिन तक नहीं उतर रहा है तो चिकित्सक की सलाह पर ही कोविड टेस्ट कराएं। ज्यादा बाहर निकलने से आप लोगों को संक्रमित करेंगे या संक्रमण घर लेकर आएंगे। रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद हैवी डोज व एंटीबायोटिक दवाएं अपने मन से न लें। इससे शरीर की इम्युनिटी कमजोर होती है। वायरस के खिलाफ रजिस्टेंस पैदा हो जाता है जिससे संक्रमण घटने की बजाय बढ़ सकता है।
सवाल : अक्टूबर से नवंबर के बीच तीसरी लहर की भविष्यवाणी हो रही है, बच्चों को प्रभावित करने की आशंका है?
डॉ. जाहिदा : भारत में तीसरी लहर की भविष्यवाणी व बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित करना किसी साइंटिफिक डाटा पर आधारित नहीं है। यह अफवाह जैसा है। डरें नहीं। इसके लिए अगस्त से सितंबर तक अधिक से अधिक युवाओं व बुजुर्गों को वैक्सीन लगनी जरूरी है। बच्चों को संक्रमण से बचाने के लिए हमें कोविड प्रोटोकाल में कोई लापरवाही नहीं करनी है। क्योंकि सितंबर तक यदि परिवार में सभी युवा व बुजुर्गों को वैक्सीन लग चुकी होगी तो बच्चों के संक्रमित होने के चांस ज्यादा होंगे। उनको बचाने के लिए सावधानियां बरतनी होगी। भीड़ वाली जगह जाने से बचना होगा।
सवाल : अमरीका में जब बच्चे संक्रमित हुए तो वहां पर इलाज के दौरान क्या प्रोटोकॉल थे? क्या माता-पिता भी साथ थे?
डॉ.जाहिदा : अमरीका में एक साल में करीब 38 लाख बच्चे संक्रमित व एक फीसदी से कम बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इलाज के दौरान माता-पिता भी मौजूद होते थे। डॉक्टरों की तरह उनको प्रोटेक्टिव एक्विपमेंट दिया गया। बच्चों की इम्युनिटी अच्छी होने की वजह से गंभीर होने का का आंकड़ा न के बराबर था। उनको सपोर्टिव ट्रीटमेंट दिया गया। आइसीयू में भर्ती वयस्क मरीजों के रिश्तेदारों को मिलने दिया जाता था क्योंकि वे न मिल पाने से भावनात्मक रूप से टूट जाते हैं।
सवाल : भारत को अगली लहर से बचने के लिए क्या कदम उठाने होंगे?
डॉ. जाहिदा : कोरोना को हराने के लिए लॉकडाउन जरूरी है पर यह विकल्प नहीं है। इसके लिए एक ही रास्ता है 3-4 माह में 60-70 फीसदी युवाओं-बुजुर्गों को वैक्सीनेट किया जाए। केस कम होने की बजाय वैक्सीनेशन का प्रतिशत बढऩे के साथ-साथ कड़े प्रतिबंधों के तहत चरणवार लॉकडाउन खोला जाए। भीड़ वाली जगहों के लिए नई गाइडलाइन बने। उसका सख्ती से पालन हो। बच्चों में संक्रमण को लेकर डरें नहीं। दुनिया में बच्चों में गंभीरता व मृत्युदर न के बराबर है लेकिन उनको सुरक्षित रखने के लिए घर के बड़े लोगों संभलना होगा। सावधानी बरतनी होगी। सोशल डिस्टेंसिंग व मास्क हमेशा पहनना होगा क्योंकि बच्चों तक संक्रमण बड़ों के माध्यम व लापरवाहियों से पहुंचेगा। इसलिए अभी हमें संक्रमण से लडऩे के लिए सोचना होगा। लोगों को सोशल बिहैवियर बदलना होगा।
सवाल : अमरीका ने दूसरी लहर में खुद को कैसे संभाला?
डॉ. जाहिदा : यूएसए में जब अक्टूबर से दिसंबर में लहर आयी तो यहां वायरस का नया वैरिएंट नहीं था। उससे ठीक पहले देश में हर जगह पाबंदियां थी। रेस्टोरेंट, बार व मॉल में 25 फीसदी से ज्यादा लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं थी। हॉस्पिटल्स में व्यवस्थाएं पहले से ज्यादा बेहतर थीं। टेस्टिंग पहले से करीब दोगुनी हो रही थी। लक्षण के आधार पर इलाज व लोगों को आइसोलेट किया गया। मरीज को होम आइसोलेशन से लेकर इलाज तक सख्त व पारदर्शी मॉनिटरिंग प्रक्रिया अपनायी गई। मरीज को कब अस्पताल में भर्ती करना है और कब अन्य टेस्ट कराने हैं, सब कुछ तय था। यहां कोई भी व्यक्ति पैसे व रसूख से बार-बार टेस्ट, दवाएं व अस्पताल में भर्ती नहीं हो सकता था। 15 दिसंबर से वैक्सीन रोल आउट होने के बाद अब तक 50 फीसदी युवा व 70 फीसदी बुजुर्ग वैक्सीनेट हो चुके हैं। इसलिए अब यहां अगली लहर के आने की आशंका न के बराबर है।

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