कंज्यूमर गाइडेंस सोसइटी ऑफ इंडिया के मानद सचिव डॉ एमएस कामथ के अनुसार, बाजार से लिए गए सैंपल पर गैस क्रोमैटोग्रॉफी टेस्ट किया गया। इनमें 45 सैंपल मिलावटी थे। यानी लेबल पर लिखे विवरण इससे मेल नहीं खाते। इसके अलावा, 5 सैंपल में मेथनॉल था, जबकि इसका इस्तेमाल प्रतिबंधित है। यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। विशेषज्ञों के अनुसार, इससे त्वचा, आंखों और फेफडे को नुकसान पहुंच सकता है। इसका इस्तेमाल प्लास्टिक, पॉलिएस्टर और सॉल्वेंट्स के उत्पादन में होता है। इसके इस्तेमाल से उल्टी आना, सिर दर्द और ज्यादा इस्तेमाल करने से मौत तक हो सकती है।
वहीं, महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे के अनुसार, खराब गुणवत्ता का सैनिटाइजर बेचना और इस्तेमाल करना ठीक नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सैनिटाइजर के लिए एक फॉर्मूला दिया है और उसी के तहत इसका उत्पादन होना चाहिए। अगर इसमें इथेेनॉल की मात्रा कम कर दी जाएगी, तो यह काम नहीं करेगा। मिलावटी सैनिटाइजर को बेचने से रोकने के लिए जल्द ही छापे मारने की कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन को जरूरी आदेश दिए गए हैं।
दूसरी ओर, कामथ का कहना है कि केंद्र सरकार ने भी उनकी रिपोर्ट पर संज्ञान लिया है। सरकार ने पूरी जानकारी मांगी है। यह रिपोर्ट फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन को दे दी गई है। कामथ के अनुसार, सरकार को जल्द से जल्द इस पर जरूरी कदम उठाने चाहिए, क्योंकि यह जनता की सेहत से जुड़ा मामला है। डब्ल्यूएचओ और केंद्र सरकार की गाइडलाइन के तहत सैनिटाइजर में खुशबू नहीं होनी चाहिए। उस पर एक्सपायरी डेट स्पष्ट लिखी होनी चाहिए। साथ ही, निर्माता कंपनी का लाइसेंस नंबर भी लेबल पर होना चाहिए। सैनिटाइजर का पीएच लेवल 6 से 8 प्रतिशत होना चाहिए और रोगाणुओं को मारने की क्षमता करीब 99.9 प्रतिशत तक होनी चाहिए। सैनिटाइजर में इथाइल अल्कोहल की मात्रा 70 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए। हाथ या त्वचा रूखे न हों, इसके लिए ग्लिसरीन मिला हो। हालांकि, जिन्हें एलर्जी की शिकायत है, उन्हें खुशबू वाले सैनिटाइजर नहीं इस्तेमाल करने चाहिए। सबसे जरूरी बात यह कि सैनिटाइजर को बच्चों की पहुंच से दूर रखना चाहिए।