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सवर्णों को आरक्षणः ऐसे समझें सरकार के इस कदम से फायदा कम नुकसान ज्यादा

locationनई दिल्लीPublished: Jan 09, 2019 09:49:34 am

सवर्णों को आरक्षणः ऐसे समझें सरकार के इस कदम से फायदा कम नुकसान ज्यादा

modi
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही नेताओं को जनता की याद सताने लगी है। सत्ता पर दोबारा काबिज होने के लिए मोदी सरकार ने तो तीर चलाने भी शुरू कर दिए हैं। तीर निशाने पर लगा है या नहीं ये कहना अभी मुश्किल है लेकिन इस तीर ने फिलहाल विरोधियों को गहरे घाव दिए हैं। सभी धर्मों के सामान्य वर्ग के गरीब नागरिकों को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए संविधान में लाया गया संशोधन बिल लोकसभा में पास हो गया है। आज इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा। लोकसभा में बिल पर कुल 326 सांसदों ने मतदान किया, जिनमें से 323 ने संशोधन का समर्थन किया, जबकि 3 सांसदों ने बिल का विरोध किया। खास बात यह है कि वोट बैंक के लिए सवर्णों को दिया गया ये आरक्षण उनके लिए फायदे का सौदा है या नहीं…आइए जानते हैं…

मोदी सरकार ने चुनाव से ठीक पहले सवर्ण कार्ड खेलकर विरोधी खेमे में हलचल जरूर मचा दी है। लेकिन यहां ये समझना जरूरी है कि जिस वर्ग के लिए ये कार्ड चला गया है क्या वाकई उन्हें इसका फायदा मिलेगा। दरअअसल सवर्ण जातियों में गरीबों के लिए दिया जा रहा 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ फिलहाल अनारक्षित वर्ग के तीन चौथाई हिस्से से ज्यादा को मिलने की संभावना है। लेकिन इससे उन्हें लाभ होने के बजाए नुकसान भी हो सकता है।
..तो 90 फीसदी आबादी आरक्षण के दायरे में
आपको बता दें कि राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण संस्थान के आंकड़ों के मुताबिक देश में 95 फीसदी परिवारों की सालाना आय आठ लाख रुपये से कम है। एक हजार वर्गफुट से कम भूमि पर मकान वालों की संख्या 90 फीसदी है। इसी तरह कृषि जनगणना के मुताबिक 87 फीसदी किसान के पास कृषि योग्य भूमि का रकबा पांच एकड़ से कम है। यानी सरकार की ओर से घोषित गरीब की परिभाषा के मुताबिक देश की 90 फीसदी आबादी आर्थिक आधार पर आरक्षण के लाभार्थियों की श्रेणी में आती है।
मेरिट कट ऑफ बढ़ाएगा मुश्किल
इसमें पिछडे़ और दलित भी शामिल हैं जिनके लिए अलग से 50 प्रतिशत का आरक्षण है। यानी देश की आबादी में 40 फीसदी सवर्ण गरीब हैं। अभी तक यह 40 फीसदी आबादी 50.5 फीसदी अनारक्षित सीटों के लिए होड़ करती थी। लेकिन सरकार की ओर से इनके लिए अलग श्रेणी बनाए जाने के बाद इनमें केवल 10 फीसदी आरक्षित सीटों के लिए प्रतियोगिता होगी। जबकि 10 फीसदी अमीर लोगों के लिए 40.5 फीसदी अनारक्षित सीटें बचेंगी। जाहिर है उनके लिए कट ऑफ प्रतिशत कम होगा जबकि गरीब सवर्णों की श्रेणी में मेरिट का कट ऑफ काफी ऊंचा होगा।
कानूनी तौर पर भी आएगी परेशानी
आरक्षण का जश्न मनाने वालों को ये भी समझना होगा कि कानूनी तौर पर उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट दीपा ई वी के मामले में दो साल पहले ही फैसला सुना चुका है कि यदि कोई व्यक्ति एक श्रेणी के तहत आरक्षण का लाभ उठाना चाहता है तो वह दूसरी श्रेणी के तहत लाभ उठाने का दावा नहीं कर सकता। दीपा ने ओबीसी कैटगरी के तहत नौकरी के लिए आवेदन किया था लेकिन उनका चयन नहीं हो सका। तब उन्होंने अदालत से अपील की उनका चयन सामान्य वर्ग के तहत हो रहा है। उन्हें इसकी अनुमति दी जाए। लेकिन अदालत ने यह कहते हुए साफ इंकार कर दिया कि वे उम्र में ओबीसी वर्ग के तहत रियायत ली और इंटरव्यू भी उसी वर्ग के तहत दिया। इसलिए वे सामान्य वर्ग के लिए चयन की पात्र नहीं हैं।
कानूनी खामियां
संविधान विशेषज्ञ संजय पारेख कहते हैं कि यह कानून यदि बन भी गया तो ज्यूडीशियल स्क्रूटनी (अदालत की जांच) में खरा नहीं उतर पाएगा। 95 फीसदी गरीब जनता के लिए 60 फीसदी आरक्षण और पांच फीसदी अमीरों के लिए 40 प्रतिशत पद, न तो अदालत मानेगी और न ही संविधान निर्माताओं के बनाए मानकों पर खरा उतरेगा।
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