बनाया गया है नॉलेज ग्राफ
गोम्स कहते हैं कि ग्लोबल स्तर पर प्रश्नों के उत्तर देने के लिए नाॅलेज ग्राफ बनाया गया है। प्रश्नों तथा अवधारणाओं के उत्तर देने के लिए इसमें अरबों लोगों, स्थानों और चीजों के बारे में जानकारी डाली गई है और इन लोगों और जगहाें की जानकारी आपस में भी जुड़ी हुई है। इनमें सत्तर अरब कनेक्शन हैं, जो स्टीक जानकारी पलों में खोजने में मदद करेंगे। उदाहरण के लिए अगर पूछा जाए कि भारत का प्रधानमंत्री कौन है, तो हम जानते हैं कि इसका उत्तर वर्तमान प्रधान मंत्री के नाम के रूप में सामने आएगा। लेकिन इस तकनीक से उससे संबंधित अौर भी जानकारियां बिना पूछे ही डिस्प्ले होंगी, जिनके बारे में हम जानना चाह रहे होते हैं। यही सवाल अगर कैलेफाेर्निया में कोई पूछता है, तो उसे उसके मुताबिक उत्तर मिलेंगे। इससे संबंधित ऐसे उत्तर भी, जिनके बारे में वो प्रश्न पूछ सकता है।
गोम्स कहते हैं कि ग्लोबल स्तर पर प्रश्नों के उत्तर देने के लिए नाॅलेज ग्राफ बनाया गया है। प्रश्नों तथा अवधारणाओं के उत्तर देने के लिए इसमें अरबों लोगों, स्थानों और चीजों के बारे में जानकारी डाली गई है और इन लोगों और जगहाें की जानकारी आपस में भी जुड़ी हुई है। इनमें सत्तर अरब कनेक्शन हैं, जो स्टीक जानकारी पलों में खोजने में मदद करेंगे। उदाहरण के लिए अगर पूछा जाए कि भारत का प्रधानमंत्री कौन है, तो हम जानते हैं कि इसका उत्तर वर्तमान प्रधान मंत्री के नाम के रूप में सामने आएगा। लेकिन इस तकनीक से उससे संबंधित अौर भी जानकारियां बिना पूछे ही डिस्प्ले होंगी, जिनके बारे में हम जानना चाह रहे होते हैं। यही सवाल अगर कैलेफाेर्निया में कोई पूछता है, तो उसे उसके मुताबिक उत्तर मिलेंगे। इससे संबंधित ऐसे उत्तर भी, जिनके बारे में वो प्रश्न पूछ सकता है।
बिना पूछे भी मिलेंगी आपके काम की जानकारियां
उन्होंने कहा कि इस तकनीक को ऐसे डेवलप किया गया है कि कई बार बिना पूछे ही आपके इंटरेस्ट के अनुसार जानकारियां आपके सामने आएंगी। जैसे अगर आपने फलाइट बुक कराई है, तो उसका समय। वो सही समय पर है या लेट है। गोम्स ने कहा कि डेस्क टॉप पर काम करते हुए जब आप कुछ पढ़ते हैं, तो संबंधित विषय की जानकारी के लिए आप हाइपर लिंक से दूसरी जगह जाकर जानकारियां पढ़ सकते हैं। लेकिन समार्टफोन पर कोई भी नीले लिंक देखना पसंद नहीं करता। वो सीधा अपने प्रश्न का उत्तर चाहता है, वो भी तुरंत। इसी को ध्यान में रखते हुए ये तकनीक विक्सित की गई है। पिछले साल से िक्रकेट मैचों के स्कोर देने के लिए इसी तकनीक का इस्तेमाल हुआ है।
उन्होंने कहा कि इस तकनीक को ऐसे डेवलप किया गया है कि कई बार बिना पूछे ही आपके इंटरेस्ट के अनुसार जानकारियां आपके सामने आएंगी। जैसे अगर आपने फलाइट बुक कराई है, तो उसका समय। वो सही समय पर है या लेट है। गोम्स ने कहा कि डेस्क टॉप पर काम करते हुए जब आप कुछ पढ़ते हैं, तो संबंधित विषय की जानकारी के लिए आप हाइपर लिंक से दूसरी जगह जाकर जानकारियां पढ़ सकते हैं। लेकिन समार्टफोन पर कोई भी नीले लिंक देखना पसंद नहीं करता। वो सीधा अपने प्रश्न का उत्तर चाहता है, वो भी तुरंत। इसी को ध्यान में रखते हुए ये तकनीक विक्सित की गई है। पिछले साल से िक्रकेट मैचों के स्कोर देने के लिए इसी तकनीक का इस्तेमाल हुआ है।
उन्होंने कहा कि गूगल लगातार अपनी तकनीक में सुधार कर रहा है। इसी दौरान हमने ये महसूस किया कि सर्चिंग में सुधार लाने के लिए वास्तविक दुनिया की अवधारणाओं के अनुसार उचित रिजल्ट जरूरी है। पिछले 19 साल से गूगल से जुुड़े गोम्स बताते हैं कि समर्टफोन पर व्यक्ति आसानी से जानकारी हासिल करना चाहता है। और गूगल ने इस दिशा में पिछले कुछ साल में बहुत काम किया है। क्रिकेट मैच के स्कोर के अलावा और भी कई तरह की जानकारियां दी जा रही हैं। यानी ऐसी जानकारियां भी जो आप पूछते नहीं, लेकिन उनकी आपको जरूरत होती है। बताते हैं कि ऐसा मशीन लर्निंग तकनीक के विकास से ये संभव हुआ है। हम इसका इस्तेमाल सर्चिंग के अन्य पहलुओं में भी किया जाएगा, ताकि भाषा तथा पूछे गए प्रश्नों के अन्य संकेतों को समझकर बेहतर परिणाम दिए जा सकें। पेज रैंकिंग भी इसी का हिस्सा है।
फेक न्यूज से ऐसे निपट रहे हैं
गोम्स कहते हैं कि पिछले साल अमरीका में फेक न्यूज के साथ निपटना गूगल सर्च इंजन के लिए बड़ी चुनौती रहा। हालांकि गोम्स इसे बहुत छोटा मानते हैं। कहते हैं- फेक न्यूज वाला मामला सर्च किए गए केवल 2 फीसदी डाटा को ही प्रभावित करता है। इसके बावजूद ये हमारे लिए महत्वपूर्ण है। हमने सर्चिंग के लिए गाइडलाइन बदली हैं, ताकि यूजर्स को बेहतर नतीजे ही मिलें। गोम्स मानते हैं कि हालांकि खबरें अच्छे स्रोत से ही आती हैं। इसके बावजूद हमारी कोशिश है कि सर्च इंजिन विश्वस्नीय और प्रासंगिक स्रोतों से ही खबरों को पूल करे। इसके लिए एक साल में 2 हजार से ज्यादा तकनीकी बदलाव किए गए हैं और उसके अच्छे नतीजे भी सामने आए हैं। इसके बावजूद गोम्स मानते हैं कि किसी भी समस्या को पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता। क्योंकि रोजाना 15 फीसदी ऐसी चीजों के बारे मंे सर्च किया जाता है, जो पहले कभी नहीं की गई होतीं। राेजाना लाखों नए दस्तावेज अपलोड होते हैं।
गोम्स कहते हैं कि पिछले साल अमरीका में फेक न्यूज के साथ निपटना गूगल सर्च इंजन के लिए बड़ी चुनौती रहा। हालांकि गोम्स इसे बहुत छोटा मानते हैं। कहते हैं- फेक न्यूज वाला मामला सर्च किए गए केवल 2 फीसदी डाटा को ही प्रभावित करता है। इसके बावजूद ये हमारे लिए महत्वपूर्ण है। हमने सर्चिंग के लिए गाइडलाइन बदली हैं, ताकि यूजर्स को बेहतर नतीजे ही मिलें। गोम्स मानते हैं कि हालांकि खबरें अच्छे स्रोत से ही आती हैं। इसके बावजूद हमारी कोशिश है कि सर्च इंजिन विश्वस्नीय और प्रासंगिक स्रोतों से ही खबरों को पूल करे। इसके लिए एक साल में 2 हजार से ज्यादा तकनीकी बदलाव किए गए हैं और उसके अच्छे नतीजे भी सामने आए हैं। इसके बावजूद गोम्स मानते हैं कि किसी भी समस्या को पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता। क्योंकि रोजाना 15 फीसदी ऐसी चीजों के बारे मंे सर्च किया जाता है, जो पहले कभी नहीं की गई होतीं। राेजाना लाखों नए दस्तावेज अपलोड होते हैं।