इतना ही नहीं ये दुनिया की बड़ी सेनाओं की तुलना में यह जैकेट कहीं नहीं ठहरतीं। अमेरिका, रूस और चीन की सेनाएं गले के ठीक नीचे से टखने के ऊपर तक की जैकेट इस्तेमाल करती हैं। वहीं भारतीय सेनाओं को बगल से खुली हुई स्वेटर स्टाइल की जैकेट मिलती हैं जिससे आपरेशन के दौरान सैनिकों की मौत ज्यादा संख्या में होने की आशंका रहती है।
रक्षा मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति की रिपोर्ट में सरकार के जवाब के अनुसार 2009 में थल सेना को एक लाख 86 हजार 138 बुलेटप्रूफ जैकेट खरीदने की मंजूरी दी गई, लेकिन 2015 तक खरीद प्रक्रिया चलती रही। बाद में पुरानी मंजूरी को निरस्त कर मार्च 2016 में निविदा आमंत्रित की गई और दिक्ïकतों का हवाला देते हुए 50 हजार जैकेट खरीदने का आर्डर दिया गया।
रिपोर्ट में आया सच: यूपीए, एनडीए में एक जैसा हाल
सिर्फ 30 हजार मिलीं
रिपोर्ट के अनुसार इस आर्डर के जरिए भी जैकेटों की आपूर्ति तेजी से नहीं हो पाई और अक्टूबर 2017 तक सिर्फ 30 हजार जैकेट ही सेना को मिल पाई हैं और उसे बीस हजार जैकेट मिलने का अभी भी इंतजार है।
सिर्फ 30 हजार मिलीं
रिपोर्ट के अनुसार इस आर्डर के जरिए भी जैकेटों की आपूर्ति तेजी से नहीं हो पाई और अक्टूबर 2017 तक सिर्फ 30 हजार जैकेट ही सेना को मिल पाई हैं और उसे बीस हजार जैकेट मिलने का अभी भी इंतजार है।
आठ साल इंतजार करती रही सेना
भाजपा सांसद और सेवानिवृत्त मेजर जनरल भुवन चन्द्र खंडूरी की अध्यक्षता वाली समिति ने इस पर खेद जताते हुए कहा है कि 2009 में मंजूरी दिए जाने के बावजूद आठ वर्षों से सेना सिर्फ इंतजार ही करती रही। इतना ही नहीं इन आठ सालों में जैकेट खरीदने की प्रक्रिया पर खर्च की गई धनराशि भी व्यर्थ चली गई। आपरेशनल अर्थात इन्फैन्ट्री बटालियन के लिए 3 लाख 53 हजार जैकेटों की आवश्यकता आंकी गई थी, लेकिन आधी जैकेट ही खरीदने की अनुमति दी गई।
भाजपा सांसद और सेवानिवृत्त मेजर जनरल भुवन चन्द्र खंडूरी की अध्यक्षता वाली समिति ने इस पर खेद जताते हुए कहा है कि 2009 में मंजूरी दिए जाने के बावजूद आठ वर्षों से सेना सिर्फ इंतजार ही करती रही। इतना ही नहीं इन आठ सालों में जैकेट खरीदने की प्रक्रिया पर खर्च की गई धनराशि भी व्यर्थ चली गई। आपरेशनल अर्थात इन्फैन्ट्री बटालियन के लिए 3 लाख 53 हजार जैकेटों की आवश्यकता आंकी गई थी, लेकिन आधी जैकेट ही खरीदने की अनुमति दी गई।