पत्र में गुजारिश की गई है कि राज्य सरकारों को सिगरेट, बीड़ी, गुटखा और खैनी बेचने वाली दुकानों को एक नियम के अंदर लाकर उनको लाइसेंस देना चाहिए। पत्र में आगे लिखा है कि इससे सरकार को पता लगेगा कि कितनी दुकान सिगरेट आदि बेचने के लिए रजिस्टर्ड हैं।
मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार अरुण झा ने बताया कि इसका उद्देशय लोगों खासकर बच्चों और युवाओं को हानिकारक पदार्थों से दूर रखना है। मंत्रालय का मानना है कि अगर कोई सिगरेट ना पीने वाले ऐसी दुकानों पर कोल्ड-ड्रिंक या टॉफी लेने जाता है तो वो भी सिगरेट के प्रति आकर्षित हो सकता है।
इस फैसला का मकसद उन लोगों की सेहत का ख्याल रखना है जो सिगरेट और धुएं का सेवन नहीं करते हैं। मंत्रालय के मुताबिक अगर कोई बच्चा, बुजुर्ग या युवा कोल्ड ड्रिंक या टॉफी लेने के लिए सिगरेट की दुकान पर जाता है, तो वो सिगरेट के प्रति आकर्षित हो सकता है।
साल 2009 में कराए गए ग्लोबल सर्वे के मुताबिक 9वी से 12वीं तक के 14.6 फीसदी छात्र किसी न किसी रुप में तंबाकू का सेवन करते हैं।
WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर साल करीब 10 करोड़ लोगों को धुएं से होने वाली बीमारियों की वजह से जान गवां देते हैं। कैंसर, सांस संबंधित परेशानी और दिल की बीमारी के पीछे सबसे बड़ी वजह धुंआ बताया गया है। मंत्रालय का कहना है कि सिगरेट की दुकानों पर कोला-कैंडी की बिक्री पर प्रतिबंध लोगों की सेहत से जुड़ा हुआ है, इसलिए राज्य सरकारों का इसपर सकारात्मक जवाब मिल रहा है।