मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गुजरात यूनिवर्सिटी में गुजराती की विभागाध्यक्ष कीर्तिदा शाह ने कहा, “हमनें जानबूझकर इसमें एक जैसा पैटर्न डाला। केवल होनहार छात्र ही इसे सही-सही चुन सके। अक्सर बच्चे जब जवाब नहीं जानते हैं तो वो ऐसा करते हैं और इसलिए हम यह जांचने में सक्षम हो जाते हैं कि क्या स्टूडेंट्स ने जवाब तुक्के से दिए हैं या नहीं। पीएचडी की परीक्षा में 77 छात्र शामिल हुए जबकि एमफिल की परीक्षा में 37 उम्मीदवार आए।”
गुजरात विश्वविद्यालय के कुलपति हिमांशु वोरा ने कहा, “मुझे इसमें कुछ अजीब नहीं लगता और इस संबंध में गुजराती विभाग से कोई भी स्पष्टीकरण नहीं मांगा। रविवार की रात में परिणाम जारी किया गया और केवल 10 फीसदी छात्रों ही परीक्षा में सफल हुए।”
कुल 739 छात्रों ने एमफिल की 190 सीटों के लिए परीक्षा दी थी, जिनमें केवल 46 ही सफल हुए। उन्होंने कहा, “हम सफल छात्रों का प्रतिशत बढ़ाने के लिए ग्रेस मार्क्स भी नहीं दे सकते क्योंकि यह यूजीसी नियमों के खिलाफ है। नौ छात्र ऐसे हैं जिन्हें परीक्षा में शामिल होने से छूट दे दी गई और इसलिए 190 सीटों पर कुल 55 छात्र सफल रहे।”
वहीं, पीएचडी की 600 सीटों के लिए 1,881 छात्र शामिल हुए और इनमें केवल 203 ही सफल हुए। एमफिल और पीएचडी दोनों की ही प्रवेश परीक्षाओं में सफलता पाने के लिए एक छात्र को कम से कम 50 फीसदी अंक लाने जरूरी हैं। कुल 442 छात्र एमफिल परीक्षा उत्तीर्ण कर चुके थे, इसलिए इन्हें प्रवेश परीक्षा देने से छूट दी गई थी। इसलिए 600 सीटों के लिए 645 छात्र योग्य रहे। इन छात्रों को समूह चर्चा और वैयक्तिक साक्षात्कार के लिए बुलाया गया है।