खुद ही चाय बनाते हैं छात्र
इस ढाबे की खास बता ये है कि इस ढाबे में न तो कोई मालिक है और न ही कोई नौकर। ये ढाबा सिर्फ रात के वक्त खुलता है। छात्र यहां पर चाय बनाने का सामान लेकर आते हैं और खुद ही चाय बनाते हैं। चाय के साथ देश-विदेश के मुद्दों पर चर्चा होती है। चाय पीने के बाद सभी छात्र अपने गिलास धो कर खुद ही रख देते हैं।
इस ढाबे की खास बता ये है कि इस ढाबे में न तो कोई मालिक है और न ही कोई नौकर। ये ढाबा सिर्फ रात के वक्त खुलता है। छात्र यहां पर चाय बनाने का सामान लेकर आते हैं और खुद ही चाय बनाते हैं। चाय के साथ देश-विदेश के मुद्दों पर चर्चा होती है। चाय पीने के बाद सभी छात्र अपने गिलास धो कर खुद ही रख देते हैं।
क्यों शुरू किया ढाबा?
दरअसल कैंटीन 11 बजे बंद होने से छात्रों को रात में चाय नहीं मिल रही थी। छात्रों ने बताया कि उन्होंने यूनिवर्सिटी प्रशासन के विरोध में ये ढाबा बना दिया। छात्र पैसे इकट्ठा करके खुद इसे चलाते हैं। शुरुआत में इस ढाबे के बारे में कम लोगों को पता था पर अब ये ढाबा काफी लोकप्रिय हो गया है। वहीं छात्रों का कहना है कि रात में ये ढाबा खुला रहता है तो यहां पर भीड़ रहती है। ऐसे में कैंपस की लड़कियों खुद को राम में भी सुरक्षित महसूस करती हैं।
दरअसल कैंटीन 11 बजे बंद होने से छात्रों को रात में चाय नहीं मिल रही थी। छात्रों ने बताया कि उन्होंने यूनिवर्सिटी प्रशासन के विरोध में ये ढाबा बना दिया। छात्र पैसे इकट्ठा करके खुद इसे चलाते हैं। शुरुआत में इस ढाबे के बारे में कम लोगों को पता था पर अब ये ढाबा काफी लोकप्रिय हो गया है। वहीं छात्रों का कहना है कि रात में ये ढाबा खुला रहता है तो यहां पर भीड़ रहती है। ऐसे में कैंपस की लड़कियों खुद को राम में भी सुरक्षित महसूस करती हैं।