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ऐसी याचिकाएं दायर करना निंदनीय
याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि इस तरह की याचिकाएं दायर करना निंदनीय हैं। ऐसी याचिकाओं को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की पीठ ने कहा कि इस तरह की याचिका पीड़ितों के रिश्तेदारों प्रति गंभीर असंवेदनशीलता दर्शाती है। उन्होंने कहा कि अपनों को खोने के बाद जिस तरह की पीड़ा से उन्हें गुजरना पड़ा है वह बहुत बुरा है। इसमें 39 भारतीयों की जान बचाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से उठाए गए कदमों पर गौर नहीं किया गया है।
याचिकाकर्ता पर लगा जुर्माना
वहीं, अदालत याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता वकील महमूद प्राचा पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। साथ ही याचिकाकर्ता प्राचा को 4 सप्ताह के अंदर रकम जमा करने का आदेश दिया है। बता दें कि प्राचा ने अपनी याचिका में दावा किया था कि सरकार को 39 भारतीयों के मारे जाने की पहले से जानकारी थी। आतंकियोंने मोसुल से अपहरण के बाद उन भारतीयों की हत्या कर दी थी, लेकिन सरकार ने इसका खुलासा नहीं किया। सरकार लगाकार यही कहती रही ही वे सभी जिंदा है।
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विदेश मंत्री के बया में थी कई विसंगतियां
यह नहीं महमूद प्राचा ने दावा किया था कि संसद में विदेश मंत्री ने जो बयान दिया था उसमें भी कई विसंगतियां थीं। प्राचा ने याचिका में इन मौतों की जांच की मांग भी की थी क्योंकि वह जानना चाहते थे कि कब और कैसे भारतीयों की हत्या की गई। बता दें कि केंद्र और खुफिया ब्यूरो की ओर से उपस्थित अधिवक्ता माणिक डोगरा ने सुनवाई के समय कोर्ट से कहा कि इस याचिका में कोई जनहित नहीं है। इस याचिका का तुरंत खारिज कर दिया जाना चाहिए।