मंदिर में बिना भेदभाव किए किसी भी व्यक्ति को जाने की अनुमति
न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और पाल सिंह की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि उत्तराखंड राज्य में उच्च जाति पुजारी सभी धार्मिक स्थानों और मंदिरों में निचली जातियों के सदस्यों की ओर से धार्मिक समारोह, पूजा, या अनुष्ठान करने से मना नहीं कर सकते। बेंच ने कहा कि राज्य में स्थित किसी भी मंदिर में बिना भेदभाव किए किसी भी व्यक्ति को जाने की अनुमति है। चाहे वह व्यक्ति किसी भी जाति या समुदाय से संबंध रखते हैं। अदालत ने कहा कि मंदिरों के अंदर पुजारी के रूप में सेवा करने वाली अन्य जातियों के सदस्यों पर कोई प्रतिबंध नहीं था। अदालती आदेश में कहा गया कि मंदिरों में योग्य और बुद्धिमान व्यक्तियों को पुजारी के रूप में नियुक्ति किया जा सकता है। भले ही वह किसी भी जाति का हो। बेंच ने साफ साफ कहा कि किसी भी प्रशिक्षित और योग्य व्यक्ति को मंदिरों में उसकी जाति के आधार को देखे बिना नियुक्त किया जा सकता है।
2016 में दायर की गई थी याचिका
उच्च न्यायालय 2016 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों द्वारा दायर जनहित याचिका पर फैसला सुनाया है। याचिकाकर्ता, हरिद्वार में हरकी पौरी में धर्मशाला के संरक्षक हैं। गौरतलब है कि 15 जून को इस मुद्दे पर फैसला सुनाया गया था, लेकिन पुजारियों से संबंधित आदेश 12 जुलाई को आया है। उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को याचिकाकर्ता ने बड़ी जीत बताया है।