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उत्तराखंड हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसले पर SC/ST वर्ग ने जताई खुशी

उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले के बाद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों ने प्रसन्नता जाहिर की है।

नई दिल्लीJul 12, 2018 / 07:31 pm

Prashant Jha

uttrakhand high court

उत्तराखंड हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, ऊंची जाति के पुजारी SC/ST लोगों की पूजा करने से नहीं कर सकते इनकार

देहरादून: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला दिया है। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि ऊंची जाति के पुजारी एससी/एसटी लोगों की मंदिरों में पूजा करने या कराने से इनकार नहीं कर सकते हैं। हाईकोर्ट के फैसले के बाद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों ने प्रसन्नता जाहिर की है। लोगों ने कोर्ट के फैसले को बड़ी जीत बताया है। अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के लोगों का मानना है कि समाज में इस फैसले का व्यापक असर होगा। हाईकोर्ट का ये फैसला इस तरह की कुरीतियों पर आदर्श फैसला साबित होगा। याचिकाकर्ताओं ने इस फैसला का स्वागत करते हुए कहा कि यह फैसला आधुनिकता की तरफ बढ़ रहे समाज के लिए एक उदाहरण साबित हो सकता है।

मंदिर में बिना भेदभाव किए किसी भी व्यक्ति को जाने की अनुमति

न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और पाल सिंह की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि उत्तराखंड राज्य में उच्च जाति पुजारी सभी धार्मिक स्थानों और मंदिरों में निचली जातियों के सदस्यों की ओर से धार्मिक समारोह, पूजा, या अनुष्ठान करने से मना नहीं कर सकते। बेंच ने कहा कि राज्य में स्थित किसी भी मंदिर में बिना भेदभाव किए किसी भी व्यक्ति को जाने की अनुमति है। चाहे वह व्यक्ति किसी भी जाति या समुदाय से संबंध रखते हैं। अदालत ने कहा कि मंदिरों के अंदर पुजारी के रूप में सेवा करने वाली अन्य जातियों के सदस्यों पर कोई प्रतिबंध नहीं था। अदालती आदेश में कहा गया कि मंदिरों में योग्य और बुद्धिमान व्यक्तियों को पुजारी के रूप में नियुक्ति किया जा सकता है। भले ही वह किसी भी जाति का हो। बेंच ने साफ साफ कहा कि किसी भी प्रशिक्षित और योग्य व्यक्ति को मंदिरों में उसकी जाति के आधार को देखे बिना नियुक्त किया जा सकता है।

2016 में दायर की गई थी याचिका
उच्च न्यायालय 2016 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों द्वारा दायर जनहित याचिका पर फैसला सुनाया है। याचिकाकर्ता, हरिद्वार में हरकी पौरी में धर्मशाला के संरक्षक हैं। गौरतलब है कि 15 जून को इस मुद्दे पर फैसला सुनाया गया था, लेकिन पुजारियों से संबंधित आदेश 12 जुलाई को आया है। उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को याचिकाकर्ता ने बड़ी जीत बताया है।

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