सरकार ने राज्य सभा में इसे चर्चा के लिए पेश किया जिसके बाद काफी बहस हुई और ध्वनिमत के साथ इसे पारित कर दिया। अब यह विधेयक इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (एमेंडमेंट ) बिल, 2020 की जगह लेगा।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि इससे जुड़े अध्यादेश को कोरोना से पैदा हुए हालातों के कारण लाया गया था।
कंपनियों और गारंटर के खिलाफ एक साथ हो सकेगी कार्रवाई
आपको बता दें कि इस कानून की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसमें दोषी कंपनी और गारंटर के खिलाफ एक साथ कार्रवाई की जा सकेगी। वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि IBC के तहत कर्ज भुगतान में चूक करने वाली कंपनियों और व्यक्तिगत गारंटी देने वालों के खिलाफ साथ-साथ कार्रवाई की जा सकती है।
इससे पहले जून में सरकार की ओर से लाए अध्यादेश में ये प्रावधान किया गया था कि कोरोना महामारी की वजह से 25 मार्च से छह महीने तक कोई नई दिवाला कार्रवाई शुरू नहीं की जाएगी।
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हालांकि, ये साफ कर दिया गया था कि 25 मार्च से पहले कर्ज भुगतान में चूक करने वाली कंपनियों के खिलाफ दिवाला प्रक्रिया के तहत कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के जरिये कारोबार को दिवालिया होने से बचाने के लिए धारा-7, 9 और 10 का निलंबन किया गया है।
बैंकों का एनपीए हुआ कम
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि कोरोना महामारी के संकट के कारण लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है और सरकार ने उसका संज्ञान लेते हुए कई कदम उठाए हैं। इस विधेयक पर चर्चा के दौरान भाजपा सांसद अरुण सिंह ने कहा कि इससे बैंकों की नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (NPA) में भारी कमी आई है। अरुण सिंह ने सरकार द्वारा पेश किए गए इस विधेयक को साहसिक कदम बताया।
हालांकि कांग्रेस सदस्य विवेक तन्खा ने इसपर कुछ आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि धारा-10 के निलंबन से कुछ हासिल नहीं होगा। उन्होंने कहा कि चूंकि कोरोना के खत्म होने का कोई समयसीमा निर्धारित नहीं है तो ऐसे में सरकार यदि सिर्फ बड़े कॉरपोरेट्स पर ध्यान देती रही तो छोटे व्यापारियों पर बुरा असर होगा।