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यहां बच्चों के नाम रखे जाते हैं कर्नल और कैप्टन
माधवरम गांव के सैनिक स्वतंत्र भारत के हर युद्ध का हिस्सा रहे हैं। आज भी इस गांव के 250 सैनिक सीमाओं पर देश की रक्षा कर रहे हैं। यहां के हर परिवार से एक ना एक सदस्य भारतीय सेना में नौकरी देते हुए देश की सेवा कर रहा है। कोई परिवार के तो चार-चार सदस्य सेना में शामिल हो चुके हैं। यहां के लोगां को जवानों से और उनकी रैंकों से इतना प्रेम है कि वे अपने बच्चों के नाम भी कर्नल और कैप्टन समेत अन्य सैन्य पदों के नाम रखना पसंद करते हैं। यहां की स्त्रियां भी सैनिकों से शादी करने में गर्व महसूस करती हैं। यहां के लोग सेवानिवृत लोगों को उनके नाम से नहीं बल्कि उनकी रैंक के नाम से बुलाते हैं।
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सहेज कर रखे हैं पदक
माधवरम गांव के अधिकांश घरों में लोगों ने बड़े ही गर्व के साथ अपने संबंधियों द्वारा युद्ध में जीते गए पदकों को सहेज कर रखा है। माधवरम के लोगों ने यहां के सैनिकों के बलिदान और सेवा की स्मृति में अमर जवान ज्योति की तर्ज पर एक शहीद स्मारक का निर्माण कराया है।
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ब्रिटिशों ने भी लोहा माना
औपनिवेशिक शासन के दौरान इस गांव के 90 सैनिकों ने ब्रिटिश साम्राज्य की तरफ से युद्ध लड़ा था। द्वितीय विश्वयुद्ध में तो यह संख्या बढ़कर 1110 तक पहुंच गया था। यहां के सूबेदार वेमपल्ली वेंकटाचलम को राय बहादुर, पालकी सूबेदार, घोड़ा सूबेदार जैसी उपाधियों से नवाजा गया। यहां तक कि उन्हें विक्टोरिया क्रॉस मेडल सम्मान भी मिल चुका है। वेंकटाचलम के बेटे मार्कंडेयुलु ने 1962 में सिंध-भारत युद्ध, 1965 में भारत.पाक युद्ध और 1971 में बांग्लादेश मुक्तिसंग्राम का हिस्सा बनकर पुरस्कृत हो चुके हैं। उनके पोते सुब्बाराव नायडू भारतीय सेना से हवलदार के पद पर सेनानिवृत्त हो चुके हैं और उनके प्रपौत्र मानस का भी चयन सेना में हो चुका है।
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बेटियां भी नहीं हैं पीछे
जबसे भारतीय वायुसेना और थलसेना में महिलाओं के पदों पर भर्ती होने लगी है तबसे गांव की युवतियों के सपनों को तो जैसे पंख लग गए हो। क्योंकि वह अपने परिजनों से प्रेरित हो लेकर सेना भर्ती होकर अपना लोहा मनवाना चाहती हैं।