हालत यह है कि सेना के पास जरूरत पड़ने पर हथियारों की आपात खरीद और दस दिन के भीषण युद्ध के लिए जरूरी हथियार तथा साजो-सामान तथा आधुनिकीकरण की 125 योजनाओं के लिए भी पर्याप्त पैसा नहीं है। दो मोर्चों पर एक साथ युद्ध की तैयारी के नजरिये से भी सेना के पास हथियारों की कमी है और उसके ज्यादातर हथियार पुराने हैं।
रक्षा मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति का का मानना है कि रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए से शुरू की गयी मेक इन इंडिया योजना के तहत सेना की 25 परियोजनाएं भी पैसे की कमी के कारण ठंडे बस्ते में जा सकती हैं। स्थायी समिति ने वर्ष 2018-19 के लिए रक्षा मंत्रालय की अनुदान मांगों से संबंधित रिपोर्ट आज लोकसभा में पेश की।
खुद सेना ने समिति के समक्ष हथियारों तथा उपकरणों के जखीरे के बारे में खुलासा किया है। सेना उप प्रमुख ने समिति को बताया कि सेना के 68 प्रतिशत हथियार और उपकरण पुराने हैं , 24 प्रतिशत ऐसे हैं जो मौजूदा समय में प्रचलन में हैं तथा केवल 8 प्रतिशत ही अत्याधुनिक हैं। समिति को यह बताया गया कि किसी भी आधुनिक सेना के पास एक तिहाई हथियार पुराने , एक तिहाई मौजूदा प्रचलन के और एक तिहाई अत्याधुनिक होने चाहिए।
बता दें इससे पहले IPRI (इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट) की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि साल 2013 से लेकर 17 के बीच दुनिया भर में आयात किए गए हथियारों में भारत की हिस्सेदारी 12 फीसदी है। इंस्टीट्यूट ने दुनिया भर के देशों मे आयात किए गए हथियारों के बारे में रिपोर्ट जारी की है। हथियार खरीदने वालों में भारत के बाद यूएई, सउदी अरब, मिस्र, ऑस्ट्रेलिया, चीन, अल्जीरिया, इराक, पाकिस्तान और इंडोनेशिया के नाम आते हैं। भारत समेत इन देशों ने भी भारी मात्रा में हथियारों का आयात किया। यह भी बताया गया है कि अपनी सुरक्षा के लिए भारत 65 फीसदी सामान बाहर से खरीदता है।