भविष्य की लड़ाइयों में एआई निभाएगा अहम भूमिका
इसकी जानकारी देते हुए रक्षा सचिव (उत्पादन) अजय कुमार ने बताया कि सरकार ने रक्षा बलों के तीनों अंगों में एआई पर जोर देने का निर्णय लिया है। इसकी वजह यह है कि भविष्य में होने वाले युद्ध में यह अहम भूमिका निभाएगा। टाटा सन्स के प्रमुख एन चंद्रशेखरन की अध्यक्षता वाला एक उच्चस्तरीय कार्यबल इस परियोजना को अंतिम रूप दे रहा है। रक्षा सचिव ने जानकारी दी कि यह परियोजना सशस्त्र बल और निजी क्षेत्र भागीदारी के मॉडल’ के तहत कार्यांवित की जाएगी। यह अगली पीढ़ी की लड़ाई के लिए भारत की तैयारी का हिस्सा है। हमें अगली पीढ़ी के युद्ध के लिए खुद को तैयार करने की आवश्यकता है, तकनीक आधारित होगी।
वक्त की जरूरत
रक्षा सचिव ने कहा कि यह वक्त मांग है। इसी कारण दूसरी विश्व शक्तियों की ही तरह भारतीय सेना ने भी अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एआई तकनीक के इस्तेमाल पर काम शुरू किया है। भविष्य के युद्धों में मानव रहित हवाई यान, पोत, टैंक और हथियार प्रणाली के रूप में स्वचालित रोबोटिक राइफल का व्यापक इस्तेमाल होगा। सैन्य सूत्रों ने कहा कि परियोजना में रक्षा बलों के तीनों अंगों के लिए मानवरहित प्रणालियों की व्यापक सीरीज का उत्पादन भी शामिल होगा।
इससे सेना पर दबाव होगा कम
इससे चीन एवं पाकिस्तान से लगी देश की सीमाओं की निगरानी में लगे सशस्त्र बलों पर दबाव बेहद कम हो जाएगा। कुमार ने बताया कि कार्य बल की सिफारिशें जून तक आ जाएंगी और तब सरकार परियोजना पर काम शुरू करेगी। भारत का सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग आधार काफी मजबूत है। यह एआई क्षमता बढ़ाने और इसके विकास में हमारी सबसे बड़ी ताकत होगी।
एआई तकनीक में कई देश कर रहे हैं निवेश
एआई तकनीक में चीन, अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस समेत कई देश एआई तकनीक में बड़े स्तर पर निवेश कर रहे हैं। अमरीका मानव रहित ड्रोन के सहारे अफगानिस्तान और उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में आतंकियों के गुप्त ठिकानों को निशाना बनाता रहा है। मानवरहित ड्रोन आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की मदद से काम करते हैं। दूसरी तरफ भारत का पड़ोसी देश चीन भी एआई अनुसंधान एवं मशीनों से जुड़े अध्ययन में अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है। कुमार ने बताया कि दुनिया के कई देश रक्षा बलों के लिए एआई तकनीक का इस्तेमाल करने की संभावना तलाश रहे हैं। इसके लिए विभिन्न परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। अब हमने भी इस दिशा में आगे बढ़ने का निर्णय लिया है।
डीआरडीओ होगा प्रमुख भागीदार
परियोजना में अहम भूमिका निभा रहे रक्षा सचिव ने कहा कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) इसमें प्रमुख भागीदार होगा। इसके अलावा असैन्य क्षेत्र में भी एआई के इस्तेमाल की अपार क्षमता है और कार्य बल पर भी हम ध्यान दे रहे हैं। बता दें कि युद्धों में एआई तकनीक का भरपूर इस्तेमाल होने पर लड़ने का तरीका बदल जाएगा। अमरीका समेत दुनिया के कई समृद्ध देश युद्धों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल शुरू कर चुके हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा होगा कि लड़ाइयों में जवानों संख्या बेहद कम हो जाएगी। एआई तकनीक की कमांड कंट्रोल रूम में बैठे व्यक्ति के हाथों में होती है जो उसको नियंत्रित करता है और वह युद्ध क्षेत्र से दूर रहता है। सैटेलाइट की मदद से यह दोनों आपस में जुड़े रहते हैं।