भारत में यह इस तरह का पहला केस
बच्चे के हृदय में एक बड़ा छेद था। डॉक्टरों ने उसकी ओपन सर्जरी करने के बजाए स्टेंटिंग प्रोसीजर अपनाया और पैरों के नस के जरिए एक डिवाइस दिल तक पहुंचा कर छेद बंद कर दिया। डॉक्टरों का दावा है कि भारत में डिवाइस से हृदय के छेद बंद करने का यह पहला मामला है। इस केस की खास बात यह है कि वह बच्चा सिर्फ 40 दिन का ही था और उसका वजन भी 1100 ग्राम ही था।
बच्चे के हृदय में एक बड़ा छेद था। डॉक्टरों ने उसकी ओपन सर्जरी करने के बजाए स्टेंटिंग प्रोसीजर अपनाया और पैरों के नस के जरिए एक डिवाइस दिल तक पहुंचा कर छेद बंद कर दिया। डॉक्टरों का दावा है कि भारत में डिवाइस से हृदय के छेद बंद करने का यह पहला मामला है। इस केस की खास बात यह है कि वह बच्चा सिर्फ 40 दिन का ही था और उसका वजन भी 1100 ग्राम ही था।
बच्चे के दिल में 3.5 एमएम का छेद
यह बच्चा ट्वीन बेबी था जिसका जन्म मैक्स शालीमार बाग में प्रीमैच्योर डिलीवरी से हुआ था। जन्म के समय उसका वजन 1400 ग्राम था, जो बाद में और कम हो गया। उसे 30 दिन तक वेंटीलेटर में रखा गया था, तभी जांच में उसके ह्रदय में 3.5 एमएम के छेद होने की बात पता चली।
यह बच्चा ट्वीन बेबी था जिसका जन्म मैक्स शालीमार बाग में प्रीमैच्योर डिलीवरी से हुआ था। जन्म के समय उसका वजन 1400 ग्राम था, जो बाद में और कम हो गया। उसे 30 दिन तक वेंटीलेटर में रखा गया था, तभी जांच में उसके ह्रदय में 3.5 एमएम के छेद होने की बात पता चली।
ओपन सर्जरी नहीं बल्कि स्टेंटिंग प्रोसीजर से ऑपरेशन
डॉक्टरों ने बताया कि बच्चा ठीक से सांस नहीं ले पा रहा था इसलिए उसे वेंटीलेटर पर रखा गया था। लेकिन लम्बे समय से वेंटीलेटर पर रखने के कारण बच्चे को इन्फेक्शन हो गया। पहले ही प्रीमैच्योर था और उसका वजन भी कम था, अब इन्फेक्शन भी होने के बाद ये केस और भी गंभीर हो गया था। इस तरह के मामलों में आमतौर पर ओपन सर्जरी की जाती है, पर इस केस में वो भी संभव नहीं था। इसलिए डॉक्टरों ने स्टेंटिंग प्रोसीजर से इलाज करने का फैसला किया। जिस तरह स्टेंट लगाया जाता है उसी तरह इस केस में डिवाइस लगा के छेद बंद किया गया।
डॉक्टरों ने बताया कि बच्चा ठीक से सांस नहीं ले पा रहा था इसलिए उसे वेंटीलेटर पर रखा गया था। लेकिन लम्बे समय से वेंटीलेटर पर रखने के कारण बच्चे को इन्फेक्शन हो गया। पहले ही प्रीमैच्योर था और उसका वजन भी कम था, अब इन्फेक्शन भी होने के बाद ये केस और भी गंभीर हो गया था। इस तरह के मामलों में आमतौर पर ओपन सर्जरी की जाती है, पर इस केस में वो भी संभव नहीं था। इसलिए डॉक्टरों ने स्टेंटिंग प्रोसीजर से इलाज करने का फैसला किया। जिस तरह स्टेंट लगाया जाता है उसी तरह इस केस में डिवाइस लगा के छेद बंद किया गया।
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के जर्नल में छापेगा यह प्रोसीजर
यह सर्जरी बहुत जोखिम भरी थी। इस केस में इलाज का यह तरीका पहली बार इस्तेमाल किया गया है। इसीलिए इस प्रोसीजर को यूके की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने अपने जर्नल में छापने का फैसला किया है।
यह सर्जरी बहुत जोखिम भरी थी। इस केस में इलाज का यह तरीका पहली बार इस्तेमाल किया गया है। इसीलिए इस प्रोसीजर को यूके की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने अपने जर्नल में छापने का फैसला किया है।