नैसकॉम के प्रेसिडेंट आर. चंद्रशेखर ने कहा कि पिछले कुछ सालों के दौरान भारतीय आईटी कंपनियों की तरफ से वीजा आवेदनों में काफी कमी आई है। चंद्रशेखर के अनुसार इसके लिए नई टेक्नोलॉजी का यूज बढऩा जिम्मेदार है। अब कंपनियां क्लाइंट साइट पर कर्मचारियों को भेजने के बजाय पे-रोल से क्लाइंट की जरूरत पूरी करने के लिए नई टेक्नोलॉजी का यूज कर रहे हैं। वहीं, अमरीका में फिर से एच-1बी वीजा की प्रीमियम प्रोसेसिंग शुरू होने का उन्होंने स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि हम उम्मीद जता रहे थे कि यह जल्दी शुरू हो जाए। उन्होंने बताया कि अक्सर एक बार बंद होने के बाद इसे शुरू होने में करीब 2 महीने का वक्त लग जाता है। इस बार यह ज्यादा समय के लिए किया गया था, जो कि काफी अलग है।
चंद्रशेखर ने कहा कि इंडियन आईटी कंपनियों के बेहतर संचालन के लिए इस प्रोसेसिंग का शुरू होना फायदेमंद रहेगा। उन्होंने ये भी बताया कि वीजा आवेदन की संख्या काफी कम हो गई हैं। इसकी प्रमुख वजह बनी वीजा और उससे जुड़ी चिंताएं है। इसमें आवेदन स्वीकार होने में लंबा समय लगना, नए आवेदनों को लेकर सख्ती बढऩा, बिजनेस मॉडल में बदलाव और स्थानीय स्तर पर हायरिंग बढऩे समेत अन्य कई कारण हैं। जबकि नैसकॉम के वाइस प्रेसिडेंट (ग्लोबल ट्रे डेवलपमेंट्स) शिवेंद्र सिंह ने कहा कि शीर्ष 7 भारतीय कंपनियों को ग्रांट किए गए पेटीशन की संख्या में कमी आई है। जहां 2014 में ऐसे आवेदनों की संख्या 18 हजार थी, वह 2016 में घटकर 10 हजार पर रह गई है। इन आंकड़ों से साफ पता चलता है कि भारतीय आईटी कंपनियों की वीजा पर निर्भरता कम हो रही है।