नॉक्स, सॉक्स और कॉर्बन मोनो ऑक्साइड ने प्राणवायु को इतना जहरीला कर दिया है कि वह शहवासियों का ही गला घोंट रही है। बीमारियां बढ़ रही हैं, घातक हवा हार्टअटैक, फैफड़ों का कैंसर, डायबिटीज और सांसों की बीमारी का मकडज़ाल बुनकर शहरवासियों को शिकार बना रही है। ऐसा नहीं कि इंदौर अकेला इस समस्या से दो-चार हो रहा है। भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर समेत पूरे प्रदेश की स्थिति ऐसी ही है। कारण और स्तर अलग-अलग हो सकते हैं।
वल्र्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश की स्थिति चिंताजनक है। देश में 2017 में करीब 12.4 लाख मौतों का कारण वायु प्रदूषण रहा है। इसने भारत में औसत जीवन प्रत्याशा की दर भी 1.7 फीसदी तक घटा दी है। एक शोध के मुताबिक अगर प्राणवायु को शुद्ध करने के लिए कुछ नहीं किया तो 2050 तक दुनियाभर में सालाना 60 लाख से ज्यादा लोगों की मौत की वजह वायु प्रदूषण होगा। आंकड़े निश्चित ही चेतावनी दे रहे हैं। हमें शुद्ध का युद्ध छेडऩा होगा।
साफ सफाई में दुनिया के लिए मिसाल बनने के बाद तो हमारी जिम्मेदारी और बढ़ गई है। हमें वाहनों का उपयोग घटाकर पर्यावरण हितैषी पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देना होगा। पौधरोपण कर हरियाली की चादर ओढ़ानी होगी। शहरों में ऑक्सीजन जोन बढ़ाने होंगे। पर्यावरण प्रदूषण को दोयम दर्जे से बाहर निकालकर प्राथमिकता में शामिल करना होगा। सरकारी मशीनरी को पूरी ताकत से जुटना होगा। सरकार और जनता दोनों को इसमें लगना होगा।