1.लालबाग का दरबार सजाने वाले सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल की स्थापना साल 1934 में हुई थी। मुंबई के दादर और परेल से सटे लालबाग में पहले मिल मजदूर, छोटे-मोटे दुकानदार और मछुआरे रहा करते थे। यहां के पेरू चॉल बंद हो जाने से उनकी कमाई का जरिया छिन गया था। ऐसे में वे खुले आसमान के नीचे गर्मी में सामान बेचते थे।
2.दुकानदारों और मजदूरों ने परेशानी से निजात पाने के लिए एक मन्नत मांगी कि अगर उन्हें लालबाग में दुकान के लिए जमीन मिल जाए तो वे यहां गणपति जी की स्थापना करेंगे। आखिरकार गजानन ने उनकी सुन ली और उन्हें जमीन मिल गई। इसी के बाद से उन्होंने गणेश की मूर्ति यहां स्थापित की।
3.दुकानदारों ने चंदा जोड़कर मार्केट का निर्माण कराया। इसके बाद 12 सितंबर 1934 को यहां गणपति की प्रतिमा की स्थापना की गई। चूंकि लोगों की मन्नतें पूरी हुई इसलिए गणेश जी को मन्नतों का गणपति भी कहते हैं। बाद में प्रसिद्धि के बढ़ने पर लालबाग के गणेश जी को ‘लालबाग चा राजा’ यानी लालबाग के राजा के नाम से जाना जाने लगा।
4.1934 से लेकर अब तक हर साल स्थापित होने वाली गणेशी जी की प्रतिमा कांबली परिवार (Kambli family) के ही मूर्तिकार बना रहे हैं। क्योंकि वे स्थापना के समय से इससे जुड़े हुए हैं। कांबली फैमिली ने लालबाग के राजा के डिजाइन को पेटेंट करवा रखा है। मूर्ति निर्माण का काम पीढ़ि दर पीढ़ि आगे बढ़ रहा है। गणपति की इस प्रतिमा की एक और खासियत यह है कि इसे बाहर से नहीं खऱीदा जाता, बल्कि प्रतिमा वहीं बनाई जाती हैं जहां पर वो स्थापित होती है।
5.लालबाग के राजा की मुंबई समेत पूरे देश में इतनी ज्यादा मान्यता है कि यहां आम जनता से लेकर बड़े सितारों तक सब मत्था टेकने आते हैं। यहां मूर्ति हर साल तकरीबन 14 से 20 फीट ऊंची होती है। यहां चढ़ावा भी खूब आता है। पिछले साल यहां 9 करोड़ का चढ़ावा आया था।