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आईपीसी 497ः केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- विवाहेतर संबंधों में सिर्फ पुरुषों को दोषी मानना सही

याचिका में आईपीसी की धारा-497 को संविधान के विरुद्ध बताया है और इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है। यह कानून शादीशुदा महिला से संबंध बनाने को लेकर है।

Jul 11, 2018 / 06:56 pm

प्रीतीश गुप्ता

आईपीसी 497ः केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- विवाहेत्तर संबंधों में सिर्फ पुरुषों को दोषी मानना सही

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-497 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने की मांग की है। याचिका में इस धारा को संविधान के विरुद्ध बताया है और इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है। यह कानून शादीशुदा महिला से संबंध बनाने को लेकर है।
…ये है धारा-497

आईपीसी-497 का संबंध व्याभिचार से है। इस कानून के मुताबिक यदि कोई पुरुष किसी शादीशुदा महिला (जो उसकी पत्नी ना हो) के साथ संबंध बनाता है तो महिला का पति ऐसे पुरुष के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाकर उसे पांच साल तक की सजा करा सकता है। इस कानून के तहत महिलाओं को पीड़ित माना गया है उन्हें सजा का प्रावधान नहीं है।
ये है याचिकाकर्ता की दलील

आईपीसी-497 के खिलाफ लगी याचिका में कहा गया कि यह भेदभाव वाला कानून है और संविधान के अनुच्छेद-14, अनुच्छेद-15 और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है। याचिका में सवाल उठाया गया है कि अगर दोनों आपसी रजामंदी से संबंध बनाते हैं तो महिला को उस दायित्व से कैसे छूट दी जा सकती है? इसके साथ ही याचिकाकर्ता ने इसे महिलाओं के भी खिलाफ बताया है। उसका कहना है कि इस कानून में महिला को पति की प्रॉपर्टी जैसा माना गया है, क्योंकि अगर पति की सहमति हो तो फिर मामला ही नहीं बनता।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा था जवाब

याचिका मिलने पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर केंद्र सरकार से जवाब देने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सामाजिक बदलाव के मद्देनजर, लैंगिक समानता और इस मामले में दिए गए पहले के कई फैसलों को दोबारा परीक्षण की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने मामले को पांच जजों की संवैधानिक बेंच को भेज दिया था और केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा था।
केंद्र ने दिया यह जवाब

केंद्र ने कहा कि इस कानून को किसी भी तरह से कमजोर करना शादी जैसी संस्था के लिए हानिकारक साबित होगी। केंद्र ने कहा, ‘जिस प्रावधान को चुनौती दी गई है उसे विधायिका ने विवेक का इस्तेमाल कर बनाया है ताकि शादी जैसी संस्था को सुरक्षित किया जा सके। ये कानून भारतीय समाज और संस्कृति को देखकर बनाया गया है।’
कानून का हो सकता है दुरुपयोग

इस कानून का दुरुपयोग कर कोई भी दंपती किसी को फंसा सकता है। इस बात की आशंका है कि कोई महिला अपनी पति की रजामंदी से पहले किसी व्यक्ति के साथ संबंध बना ले और बाद में उसका पति संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ मुकदमे की धमकी देकर पैसे वसूल ले।

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