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ISRO को देश में चांद जैसी मिट्‌टी बनाने की तकनीक का मिला पेटेंट, चंद्रयान-2 के दौरान ही किया था करिश्मा, सच हुआ बड़ा सपना

locationनई दिल्लीPublished: May 21, 2020 03:38:02 pm

Submitted by:

Ruchi Sharma

Highlights
-इसरो ( ISRO ) ने चंद्रयान-2 ( Chandrayaan-2 ) की लैंडिंग के दौरान भारत ( India ) में ही चंद्रमा ( Moon ) जैसी सतह तैयार की थी
-इस पर लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को टेस्ट किया गया था। अब भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ( Indian Space Research Organisation, ISRO ) को इसका पेटेंट मिल गया है
-18 मई को भारतीय पेटेंट कार्यालय ने इसरो ( ISRO ) को इस तकनीक के लिए पेटेंट ( patent ) दिया

ISRO को देश में चांद जैसी मिट्‌टी बनाने की तकनीक का मिला पेटेंट, चंद्रयान-2 के दौरान ही किया था करिश्मा, सच हुआ बड़ा सपना

ISRO को देश में चांद जैसी मिट्‌टी बनाने की तकनीक का मिला पेटेंट, चंद्रयान-2 के दौरान ही किया था करिश्मा, सच हुआ बड़ा सपना

नई दिल्ली. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ( Indian Space Research Organisation, ISRO ) ने एक और नया आविष्कार किया है। चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) अभियान के दौरान इसरो ( ISRO ) ने देश में ही चांद जैसी मिट्टी बनाई थी। इसरो ( ISRO ) ने चंद्रयान-2 ( Chandrayaan-2 ) की लैंडिंग के दौरान भारत ( India ) में ही चंद्रमा ( Moon ) जैसी सतह तैयार की थी। इस पर लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को टेस्ट किया गया था। अब भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ( Indian Space Research Organisation, ISRO ) को इसका पेटेंट मिल गया है। 18 मई को भारतीय पेटेंट कार्यालय ने इसरो ( ISRO ) को इस तकनीक के लिए पेटेंट ( patent ) दिया। इसरो ने पेटेंट के लिए 15 मई 2014 को आवेदन किया था। पेटेंट ( patent ) आवेदन करने की तारीख से 20 साल तक के लिए मान्य रहेगा।

चंद्रमा (Moon) जैसी मिट्‌टी बनाने की तकनीक खोजने में इसरो के शोधकर्ता आई वेनुगोपाल (I Venugopal) , एसए कन्नन ( SA Kannan ), शामराओ (Shamrao), वी चंद्र बाबू (V Chandra Babu) की बड़ी भूमिका थी। शोध टीम में तमिलनाडु ( Tamil Nadu) की पेरियार यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ जियोलॉजी (Department of Geology of Periyar University) से एस अनबझगन, एस अरिवझगन, सीआर परमशिवम और एम चिन्नामुथु तिरुचिरपल्ली (M Chinnamuthu Tiruchirappalli) के नेशनल इस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (National Institute of Technology) के मुथुकुमारन (Muthukumaran) शामिल थे। इसरो के यूआर सैटेलाइट सेंटर (UR Satellite Center) (यूआरएससी) के डाइरेक्टर रह चुके एम अन्नादुरई ने न्यूज एजेंसी को बताया, ‘‘चांद और पृथ्वी की सतह बिल्कुल अलग है। इसलिए हमें लैंडर और रोवर की टेस्टिंग के लिए आर्टिफिशियल मिट्‌टी बनानी बड़ी, जो बिल्कुल चांद की सतह जैसी दिखती हो।
उन्होंने बताया कि अमेरिका से चांद की मिट्‌टी जैसे पदार्थ खरीदना बहुत महंगा सौदा साबित होता और इसरो को करीब 70 टन मिट्‌टी की जरूरत थी। इसलिए एक स्थायी समाधान निकालना जरूरी था।’’


अन्नादुरई ने बताया कि तमिलनाडु के सालेम में एनॉर्थोसाइट नाम की चट्‌टानें हैं, जो चांद पर मौजूद चट्‌टानों से मेल खाती हैं। वैज्ञानिकों ने पहले उन चट्‌टानों को पीसा फिर उसे बेंगलुरु लेकर आए। यहां पर इसे चांद की सतह के लिहाज से बदला गया और फिर टेस्टिंग साइट तैयार की। यह मिट्‌टी चांद की सतह से बिल्कुल मिलती है और अपोलो-16 के जरिए चांद से लाए गए सैंपलों से भी मेल खाती है। चंद्रमा की सतह दो तरह की है। पहली को हाईलैंड कहते हैं। इसकी जैसी मिट्‌टी इसरो ने तैयार की थी। चंद्रमा का 83 प्रतिशत भाग हाईलैंड का ही है। इस सतह में एल्युमिनियम और कैल्शियम ज्यादा होता है। दूसरी है मेयर। चंद्रमा पर दिखने वाले काले गड्‌ढों के भीतर की सतह को मेयर कहते हैं। इसमें आयरन, मैग्नीशियम और टाइटेनियम होता है। बहुत कम देश हैं, जिन्होंने चंद्रमा की हाईलैंड सतह को आर्टिफिशयल तौर पर अपने देश में बनाया है।
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