scriptइसरो ने किया चंद्रयान-2 की बड़ी सफलता का खुलासा, नासा के लूनर ऑर्बिटर को भी छोड़ा पीछे | ISRO shares Initial imaging by Chandrayaan-2 DF-SAR left NASA LRO far behind | Patrika News

इसरो ने किया चंद्रयान-2 की बड़ी सफलता का खुलासा, नासा के लूनर ऑर्बिटर को भी छोड़ा पीछे

locationनई दिल्लीPublished: Oct 23, 2019 07:47:42 am

ऑर्बिटर के ड्युअल फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर राडार ने दिए शानदार परिणाम।
चंद्रमा की सतह पर मौजूद क्रेटर का अध्ययन करने में काफी कारगर हैं DF-SAR।
इससे पहले के ऑर्बिटर में इन दो बैंड वाले राडार सिस्टम नहीं लगे थे।

chandrayaan 2 dfsar fig2
बेंगलूरु। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) के महात्वाकांक्षी चंद्रयान-2 अभियान ने एक और महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। इतना ही नहीं इसरो के चंद्रयान-2 ने नासा के लूनर ऑर्बिटर (LRO) को चंद्रमा की सतह के अध्ययन के मामले में काफी पीछे छोड़ दिया है। मंगलवार को इसरो ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी और चंद्रयान-2 के राडार द्वारा ली गई तस्वीरें और निरीक्षण पेश किए।
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दरअसल, चंद्रयान-2 ऑर्बिटर और नासा का चंद्रमा की परिक्रमा करने वाला टोही ऑर्बिटर दोनों ही वहां का अध्ययन और संभावनाएं तलाशने का काम कर रहे हैं। मंगलवार को इसरो ने चंद्रयान-2 के ड्युअल फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर राडार (DF-SAR) द्वारा ली गईं शुरुआती इमेजिंग और ऑब्जर्वेशन दिखाए।
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इसरो ने बताया कि चंद्रमा की परिक्रमा करने वाले चंद्रयान-1 ऑर्बिटर पर लगा सिंथेटिक अपर्चर राडार (SAR) एस-बैंड हाइब्रिड-पोलरिमेट्रिक SAR था, जबकि नासा के एलआरओ पर S & X Band वाला हाइब्रिड पोलरिमेट्रिक SAR था। इन दोनों राडार ने चंद्रमा की सतह पर गिरने वाले उल्कापिंड, क्षुद्रग्रह या धूमकेतु से बनने वाले गड्ढों (क्रेटर्स) से निकली सामग्री (इजेक्टा) के फैलने के गुणों को लेकर महत्वपूर्ण आंकड़े मुहैया कराए थे।
https://twitter.com/hashtag/ISRO?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw
अब बात करते हैं चंद्रयान-2 ऑर्बिटर में लगे L & S बैंड SAR की, जिन्हें इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वो इन क्रेटर्स के इजेक्टा मैटेरियल और मॉर्फोलॉजी (आकृति विज्ञान) के बारे में काफी बेहतर जानकारी मुहैया कराएं। चंद्रयान-2 L&S Band SAR को यह विस्तृत जानकारी जुटाने की क्षमता इसमें लगे हाई रिजोल्यूशन (2-75m तिरछी रेंज) वाली इमेंजिंग और फुल पोलरिमेट्रिक मोड्स से मिलती है। यह स्टैंडअलोन या फिर S & L Band के एक साथ काम करने से मिलती है, जो वाइड रेंज वाली रोशनी को पकड़ लेता है। भले ही यह रोशनी 9.5 से 35 डिग्री के बीच हो।
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इतना ही नहीं L-Band के ज्यादा गहराई तक देखने की क्षमता (3-5 मीटर) इसे सतह पर मौजूद क्रेटर्स के अंदर तक जांच करने में मदद करती है। चंद्रयान-2 के यह L & S Band SAR वाले पेलोड बेशक इसे चंद्रमा की ध्रुवीय सतह पर स्थायी रूप से छायादार क्षेत्रों में मौजूद पानी-बर्फ को पहचानने और इनका आंकड़ों में अनुमान लगाने में सक्षम करते हैं।
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क्रेटर

यहां आपको बता दें कि चंद्रमा की सतह पर बने गड्ढे इस पर अंतरिक्ष से पड़ने वाले उल्कापिंड, क्षुद्रग्रह या धूमकेतु के प्रभाव से पड़ते हैं। जब उल्कापिंड, क्षुद्रग्रह या धूमकेतु तेजी से चंद्रमा की सतह से टकराते हैं, तो इसमें टकराने वाली चीज के आकार के हिसाब से गड्ढा बन जाता है। इस गड्ढे को क्रेटर कहते हैं। इस क्रेटर के बनने के दौरान चंद्रमा के अंदर की सामग्री बाहर निकलकर इस क्रेटर के किनारे इकट्ठा हो जाती है, जिसे इजेक्टा कहते हैं।
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चंद्रमा की सतह

दरअसल, चंद्रमा के अस्तित्व में आने के बाद से इस पर लगातार उल्कापिंडों, क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं की बमबारी होती आ रही है। इन टक्करों के परिणामस्वरूप इस पर असंख्य गड्ढे (इंपैक्ट क्रेटर) बन गए हैं, जिन्होंने इसकी सतह पर सबसे विशिष्ट भौगोलिक विशेषताएं बनाई हैं।
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इंपैक्ट क्रेटर चंद्रमा की सतह पर तकरीबन गोलाकार गड्ढए हैं, जो छोटे, साधारण, कटोरे के आकार से लेकर बड़े, जटिल और कई चक्रों वाले (मल्टी-रिंग बेसिन) हैं। जहां ज्वालामुखी क्रेटर आंतरिक विस्फोट या आंतरिक गिरावट से बनते हैं, इंपैक्ट क्रेटर इनसे उलट आम तौर पर उठे किनारों (रिम) और आसपास के इलाके की तुलन में कम ऊंचाई वाली सतह होते हैं।
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इन इंपैक्ट क्रेटर्स की प्रकृति, आकार, वितरण और संरचना का अध्ययन और इससे जुड़े इजेक्टा के गुण, क्रेटर्स की उत्पत्ति और विकास के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं। वक्त के साथ इन क्रेटर्स के आकार-प्रकार में क्षरण होता है यानी इनकी बनावट और संरचना कमजोर होती जाती है, इसे वेदरिंग प्रॉसेस कहते हैं। इसके अलावा वक्त के साथ इजेक्टा मैटेरियल को धूल, कण, चट्टानों आदि के टुकड़ों की परतें ढंक लेती है, जो रिगोलिथ कहलाता है। इससे कई क्रेटर्स को ऑप्टिकल कैमरों से ढूंढना संभव नहीं हो पाता।
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ऐसे में सिंथेटिक अपर्चर राडार (SAR) ग्रहों की सतह को और उपसतह का अध्ययन करने के लिए एक शक्तिशाली रिमोट सेंसिंग साधन है, क्योंकि राडार का सिग्नल सतह को भेदते हुए नीचे तक चला जाता है। यह राडार सतह और दबे हुए इलाके के ऊबड़-खाबड़ हिस्सों, ढांचे और संरचना के प्रति भी संवेदनशील है।
वहीं, पोलरिमेट्री का मतलब इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणों यानी लाइट या रेडियो वेव्स के ध्रुवीकरण की माप और व्याख्या है।

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