आगरा। कहते हैं देरी से मिला न्याय, न्याय न मिलने के बराबर होता है। कुछ ऎसा ही न्याय मिला है आगरा के रामनारायण को जिन्हें खुद को नाबालिग साबित करने में ही 38 साल लग गए। इतना ही नहीं इस बीच उन्होंने 12 साल जेल में भी बिताए। अब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी उम्र संबंधी कागजों पर गौर करने के बाद उन्हें रिहा किया है। उनकी जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा अदालतों के चक्कर काटते हुए बीता।
न पुलिसनेसुनी, न ही अदालत 21 दिसंबर 1976 को हुई हत्या के एक मामले में उन्हें गिरफ्तार किया गया। सन 1976 में वो नाबालिग थे, ये बात साबित करने में उन्हें 38 साल लग गए। वो लगातार नाबालिग होने का दावा करते रहे, लेकिन ना तो पुलिस और ना ही अदालत ने उसकी बात सुनी।
2004 में उम्रकैद की सजा हत्या के मामले में उसे पहले तो जमानत मिल गई फिर उसे साल 2004 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई। तब से वो जेल में रहा। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जहां रामनारायण को इंसाफ मिला। कोर्ट ने नाबालिग ठहराते हुए 13 अगस्त 2015 को रिहा कर दिया।
कोर्ट दर कोर्ट रामनारायण निचली अदालत ने उन्हें हत्या का दोषी माना इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की जहां निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा गया। इसके बाद रामनारायण सुप्रीम कोर्ट गए यहां भी उनकी अपील खारिज कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी लेकिन उम्र के कागजों पर गौर कर अपना फैसला पलटा।