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क्या है पूरा मामला…
दरअसल, झारखंड के पूर्व मंत्री योगेंद्र साव और उनकी विधायक पत्नी निर्मला देवी 2016 के दंगा मामले में आरोपी हैं। 15 दिसंबर 2017 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने इस शर्त पर जमानत दे दी कि वह भोपाल में रहेंगे और मुकदमे की सुनवाई के अलावा अन्य किसी भी कारण झारखंड में प्रवेश नहीं करेंगे। इसी मामले में दोनों आरोपियों ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी कि उनके विरोध के बावजूद हजारीबाग की अदालत ने उनके खिलाफ वाट्सऐप कॉल के जरिए सुनवाई करके आरोप तय करने का आदेश दे दिया।
वहीं, इस मामले पर पीठ ने बचाव पक्ष की दलील को गंभीरता से लेते हुए कहा, ‘झारखंड में क्या हो रहा है? हम न्याय प्रशासन की बदनामी की इजाजत नहीं दे सकते। इसके बाद पीठ ने दोनों आरोपियों की याचिका पर झारखंड सरकार को नोटिस जारी किया और दो सप्ताह के भीतर राज्य से इसका जवाब देने को कहा।
चार लोग की हुई थी मौत
पूर्व मंत्री योगेन्द्र साव और उनकी पत्नी 2016 में ग्रामीणों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प से संबंधित मामले में आरोपी हैं। इसमें चार लोग मारे गए थे। साव अगस्त 2013 में हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री बने थे।
नहीं हो पा रही थी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग
भोपाल जिला अदालत और झारखंड की हजारीबाग जिला अदालत से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए केस चलाने का निर्देश दिया गया था। दोनों जगह कॉन्फ्रेंसिंग नेटवर्क खराब रहता है। ऐसे में निचली अदालत ने वाट्सऐप वीडियो कॉल के जरिए 19 अप्रैल को आदेश सुनाया।
जमानत शर्तों का किया उल्लंघन
झारखंड के वकील ने कहा कि पूर्व मंत्री साव जमानत की शर्तों का उल्लंघन कर रहे हैं और ज्यादातर समय भोपाल से बाहर रहे हैं, जिसकी वजह से इस मुकदमे की सुनवाई में काफी देरी हो रही है। इस पर पीठ ने कहा कि यह अलग बात है। अगर आपको आरोपी के जमानत की शर्तों का उल्लंघन करने से समस्या है तो आप जमानत रद्द करने के लिए अलग आवेदन दे सकते हैं। हम साफ करते हैं कि जमानत की शर्तों का उल्लंघन करने वाले लोगों से हमें कोई सहानुभूति नहीं है। पीठ ने पूछा कि दोनों आरोपियों के खिलाफ कितने मामले हैं?
जवाब में साव दंपति की ओर से मामले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने बताया कि साव के खिलाफ 21 मामले हैं, जबकि, उनकी पत्नी के खिलाफ 9 मामले लंबित हैं। इनमें से ज्यादातर मामले एनटीपीसी के भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलनों से जुड़े हैं। चूंकि ये मामले दायर किए जाने के दौरान दोनों आरोपी विधायक थे, इसलिए उनके खिलाफ इन मामलों को दिल्ली की विशेष अदालत में स्थानान्तरित किया जाना चाहिए।