जेएनयू के इस्लामी चरमपंथ कोर्स को लेकर मुसलमान आए विरोध में
जेएनयू में "इस्लामी चरमपंथ" नाम का कोर्स शुरू होने पर विवाद हो रहा है...

नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) एक बार फिर से विवादों में घिरता नजर आ रहा है। इस बार जेएनयू के विवादों में आने की वजह है उसका एक प्रस्तावित कोर्स। इस कोर्स का नाम "इस्लामी चरमपंथ" बताया जा रहा है। विवाद होने की वजह इस्लाम शब्द को चरमपंथ से जोड़ना है। दरअसल कोर्स के नाम पर ही विवाद होना शुरू हो गया है।

विवाद इतना है कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस कोर्स की आलोचना करते हुए कहा है कि जान बूझकर इस्लाम के साथ चरमपंथ शब्द को जोड़ा गया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना महमूद मदनी ने इस कोर्स पर जेएनयू के कुलपति को लिखित खत में कहा है कि "पूरे इस्लाम धर्म के लिए ये बहुत खराब और हास्यास्पद बात है कि जेएनयू जैसा उच्च कोटि का संस्थान इस तरह से चरमपंथ के बारे में एक कोर्स शुरू कर रहा है। यही नहीं उसे वह इस्लाम से भी जोड़ रहा है। जो कि यह दर्शाता है कि यूनिवर्सिटी पर गंदी मानसिकता के लोगों का कब्ज़ा हो चुका है।" उन्होंने जेएनयू के कुलपति से जवाब भी मांगा कि इस कोर्स का नाम इस्लामी चरमपंथ क्यों है? उन्होंने कहा कि अगर जवाब नहीं आता है, तो कानूनी रास्ता अख्तियार करेंगे। वहीं दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने जेएनयू कुलपति से इस कोर्स के बारे में विस्तार से समझाने के लिए कहा है।

हालांकि जेएनयू के एक प्रोफेसर का कहना है कि ऐसे किसी भी कोर्स के बारे में कोई प्रस्ताव नहीं दिया गया है। बता दें कि पिछले शुक्रवार यूनिवर्सिटी की अकेडमिक काउंसिल राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर एक नया कोर्स शुरू करने के लिए कहा था। इसमें विचार किया गया था कि साइबर सुरक्षा, बायोलॉजिकल वारफ़ेयर और सिक्यॉरिटी से जुड़े कोर्स शुरू किए जा सकते हैं। ऐसी खबर आई थी कि इसी बैठक में 'इस्लामी चरमपंथ' नाम का कोर्स प्रस्तावित किया गया था। विवाद होने पर अकेडमिक काउंसिल के एक प्रमुख प्रोफेसर एजी दुबे ने कहा कि जो भी ये विवाद हो रहा है फिजूल है। वहीं एक प्रोफेसर का कहना है कि अकेडमिक काउंसिल के कुछ सदस्यों ने कोर्स के नाम की निंदा की थी। साथ ही ये भी कहा था कि कोर्स का नाम बदला जाना चाहिए। कुछ सदस्यों की सहमति कोर्स का नाम सिर्फ़ 'चरमपंथ' को लेकर थी, तो वहीं कुछ का मानना था कि 'इस्लामी चरमपंथ' एक अच्छा नाम है।
वहीं आयोग ने भी यूनिवर्सिटी से इस पर जवाब मांगा है। आयोग ने पूछा है कि अगर कोई ऐसा कोर्स शुरू हुआ है, तो पूरी जानकारी दी जाए कि क्या सिलेबस पढ़ाया जाएगा? इस विषय को कौन पढ़ाएगा? साथ ही इसके विशेषज्ञ कौन होंगे? साथ ही ये भी कहा कि वो इस कोर्स से कैंपस के छात्र और कैंपस से बाहर समाज पर इस कोर्स का क्या असर पड़ेगा?' बता दें कि यूनिवर्सिटी को जवाब देने के लिए 5 जून तक का समय दिया गया है।
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