नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1999 में मई से जुलाई तक युद्ध हुआ था। इस युद्ध में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी। भारत में इस युद्ध को ‘ऑपरेशन विजय’ के नाम से भी जाना जाता है। कुछ देशों को छोड़ दें तो अंतरराष्ट्रीय मंच पर कई देशों ने भारत का समर्थन किया था। कारगिल में पाकिस्तानी सेना और मुजाहिदीनों की घुसपैठ के चलते यह युद्ध हुआ था। पाकिस्तान ने यह घुसपैठ इसलिए की थी ताकि वह भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से पीछे हटने पर मजबूर कर दे। पाकिस्तान यह दावा करता रहा है कि सियाचिन ग्लेशियर उसका हिस्सा है। हालांकि, 1984 में भारत ऑपरेशन मेघदूत के चलते सियाचिन को अपने हिस्से में मिला लिया था। इसके चलते पाकिस्तान की काफी किरकिरी हुई थी। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी पाकिस्तान को होना पड़ा शर्मिंदायुद्ध के शुरुआत में पाकिस्तान का मानना था कि इसमें उसकी सेना का कोई हाथ नहीं है। इसमें सिर्फ आतंकी शामिल हैं। हालांकि, युद्ध में मारे गए दुश्मनों के पास से मिले दस्तावेज से साबित हो गया कि आतंकियों को पाकिस्तानी सेना का भी समर्थन हासिल था। बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपनी सेना को भारतीय सीमा से पीछे हटने का आदेश देना पड़ा। इस आदेश के बावजूद कुछ पाकिस्तानी सैनिक और आतंकी भारतीय सीमा में डटे रहे जिन्हें बाद में हमारी सेना ने पीछे खदेड़ दिया। पाकिस्तान के इस कदम की आलोचना जी 8 समूह (अमरीका, रूस, जर्मनी, कनाडा, जापान, इटली, फ्रांस और इंग्लैंड) सहित कई देशों ने की। यही नहीं, पाकिस्तान का सबसे अच्छा दोस्त कहे जाने वाले चीन ने भी यह शर्त रखी की अगर पाकिस्तान बातचीत करना चाहता है तो पहले उसे अपनी सेना को भारतीय सीमा से पीछे हटाना होगा। हालांकि, चीन पूरी तरह से पाकिस्तान के खिलाफ नहीं था। तुर्की, सऊदी अरब और कुछ अन्य देशों ने जरूर पाकिस्तान का समर्थन किया था। आसियान समूह के देशों-मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रुनई, थाईलैंड, सिंगापुर, विएतनाम, फिलीपींस, लाओस, कंबोडिया और म्यांमार ने भी पाकिस्तान की आलोचना करते हुए कहा कि एलओसी से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। एलओसी के उल्लंघन पर यूरोपियन यूनियन ने भी पाकिस्तान को आड़े हाथों लिया। इजरायल ने युद्ध के दौरान भारत को हथियार मुहैया कर यह बता दिया था कि वह भारत के साथ है।