scriptकर्पूरचंद्र कुलिश अवॉर्ड 2018ः सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने पत्रकारों को सम्मानित किया | Karpur Chandra Kulish Award 2018, General Bipin Rawat attends event | Patrika News

कर्पूरचंद्र कुलिश अवॉर्ड 2018ः सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने पत्रकारों को सम्मानित किया

locationनई दिल्लीPublished: Sep 17, 2018 09:53:22 pm

‘अंतरराष्ट्रीय कर्पूरचंद्र कुलिश’ पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन सोमवार को नई दिल्ली में किया गया। विजेताओं को सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने सम्मानित किया।

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कर्पूरचंद्र कुलिश अवॉर्ड 2018ः सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने पत्रकारों को सम्मानित किया

नई दिल्ली। ‘राजस्थान पत्रिका’ के संस्थापक कर्पूरचंद्र कुलिश की याद में उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए दिए जाने वाले ‘अंतरराष्ट्रीय कर्पूरचंद्र कुलिश’ पुरस्कार का वितरण समारोह सोमवार को नई दिल्ली में आयोजित किया गया। 2016 का पुरस्कार घाना के पत्रकार अनस अरेमेयाव अनस को उनकी स्टोरी ‘अनस फ्लोर्स डेरी’ के लिए मिला है। वहीं 2017 का पुरस्कार मलेशिया के इआन यी को उनकी स्टोरी ‘स्टूडेंट्स ट्रैफिक्ड’ के लिए दिया गया। विजेताओं को सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने सम्मानित किया। कार्यक्रम को पत्रिका के समूह संपादक गुलाब कोठारी ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम की शुरुआत जनरल रावत और गुलाब कोठारी ने दीप प्रज्ज्वलन के साथ की।
2016 के मेरिट अवॉर्ड विजेता

– ‘मलयाला मनोरमा’ के संतोष जॉन थूवल को उनकी स्टोरी ‘अ सर्च फॉर द ड्रॉप टू अवेकन द लैंड ऑफ 44 रिवर्स’ के लिए दिया गया।
– मलेशिया के ‘द स्टार मीडिया’ समूह के इआन यी और उनकी टीम को ‘प्रीडेटर इन माय फोन स्टोरी’ के लिए दिया गया।
– केन्या के ‘द स्टैंडर्ड ऑन संडे’ के पैट्रिक मायोयो और जोसेफ ओडिन्हो को उनकी स्टोरी ‘रेलवे फर्म अंडर प्रोब ओवर यूज ऑफ वर्ल्ड बैंक मिलियंस’ के लिए दिया गया।
2017 के मेरिट अवॉर्ड विजेता

– दुबई के ‘एक्सप्रेस गल्फ न्यूज’ के पत्रकार मजहर फारुकी की स्टोरी ‘वी आर अ बोगस फर्म यट वी गॉट अन आईएसओ सर्टिफिकेट’ का चयन हुआ है।

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‘पत्रकार और जनता के बीच दर्द का रिश्ता होना चाहिए’
सम्मान समारोह में संबोधित करते हुए गुलाब कोठारी ने कहा, ‘सेना को बाहरी शत्रुओं से लड़ना पड़ता है और पत्रकारों को आंतरिक शत्रुओं से। आंतरिक शत्रुओं को पहचानना बहुत कठिन है। लोकतंत्र और मीडिया का गंभीर रिश्ता होता है। सत्ता का आदमी मीडिया को देखना नहीं चाहता। सत्ता अब स्वतंत्र मीडिया को नहीं देखना चाहती। मीडिया और सत्ता में समझौता होना खतरनाक है। मीडिया चौथा स्तंभ नहीं है। चौथा स्तंभ मतलब सत्ता का हिस्सा बनना। सत्ता मीडिया का पाया नहीं। लोकतंत्र का सेतु है। कई मीडिया हाउस सरकार से समझौते के लिए तैयार हैं। ऐसे में जो अखबार सवाल उठाएगा वह अकेला पड़ जाएगा। अब मीडिया के पास आजादी की तरह सपना नहीं। उनके सामने कोई लक्ष्य नहीं है। पत्रकार और जनता के बीच दर्द का रिश्ता होना चाहिए। लोकतंत्र के लिए कलम का सिपाही कहां मिलेगा।
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