समारोह में विजेताओं को सेना प्रमुख ने स्मृति चिन्ह दे कर सम्मानित किया। इस दौरान विपिन रावत ने वहां मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि पत्रिका समूह हिंदी की सेवा करने के साथ ही भारत की महानता की जानकारी भी देश दुनिया को दे रहा है। उन्होंने ने कहा कि उन्हें यहां आकर गर्व महसूस हो रहा है कि वे कर्पूरचंद्र कुलिश पत्रकारिता पुरस्कार समारोह का हिस्सा बने हैं।
पत्रिका ने पत्रकारिता में बड़े प्रतिमान स्थापित किए
विजेताओं को बधाई देते हुए जनरल रावत ने कहा, ‘आपने पत्रकारिता के क्षेत्र में बड़े प्रतिमान गढ़े हैं। पत्रिका ने सेना के साथ तृष्णा कैम्पेन किया था। सैनिक हाथ में बंदूक लेकर सीमा पर तैनात होता है और पत्रकार हाथ में कलम लेकर देश की सुरक्षा करता है। हम सब मीडिया की भूमिका और जिम्मेदारी से परिचित हैं। स्वतंत्र पत्रकारिता लोकतांत्रिक देश के लिए जरूरी है, लेकिन पत्रकारिता करते समय सिद्धांतों का ध्यान रखना चाहिए।’
रावत ने पत्रकारों की तुलना फौजी से की
दिल्ली में आयोजित भव्य समारोह में थलसेना प्रमुख ने कहा कि पत्रकार ब्रेकिंग न्यूज देते समय देश और समाज हित का ध्यान जरूर रखें। खबर देने से पहले एक बार दिल पर हाथ रखकर अन्तर्मन से विचार जरूर कर लें कि वे जो दिखाने और लिखने जा रहे हैं, वह देश और समाज के लिए हितकारी है। वहीं, रावत ने फौजी और पत्रकारों की तुलना करते हुए कहा कि एक फौजी वर्दी में सीमा पर देश की सुरक्षा करता है और पत्रकार देश के भीतर रहकर लोकतंत्र की रक्षा करता है। हमें गर्व है कि हम लोकतांत्रिक देश हैं और मीडिया पारदर्शिता के साथ काम करता रहे, इसके प्रति जागरूक भी हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने में पत्रिका संघर्षरत है
इससे पहले पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी ने पत्रकारिता में आई गिरावट के बारे में कहा कि आजादी की लड़ाई के दौरान पत्रकार जनता के मध्य से निकले, जबकि आज का पत्रकार व्यवसायी की तरह पढ़कर आता है। पत्रकारिता के जरिए पेट भरना उसका एक मात्र लक्ष्य है। संस्थागत लाभ हानि से भी उसका सरोकार नहीं है। एक तरफ वह संस्था से वेतन-भत्ते मांगता रहता है, दूसरी ओर सरकारों से मिलने वाले अतिरिक्त लाभों की अपेक्षा भी रखता है।
कोठारी ने कहा कि भारतीय मनीषा दो विरोधी संस्कृतियों के टकराव के बीच फंस गई है। मीडिया जनता का साथ छोड़ भागा है। पिछले 70 वर्षों से जनता अंग्रेजों के शासनकाल से ज्यादा लुट रही है, अपने ही चुने हुए प्रतिनिधियों से। अभिव्यक्ति मौन है। इसी वातावरण में ‘राजस्थान पत्रिका’ संघर्षरत है, लोकतंत्र के साथ-साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने में, जनता की आवाज बने रहने में, वैसे इसकी पिछले छह दशक की सम्पूर्ण यात्रा ही कांटों भरी रही है। ‘राजस्थान पत्रिका’ का उद्घोष है कि वह सोते हुओं में जागता रहने वाला प्रहरी है। उन्होंने कहा कि बशीर बद्र का यह शेर पत्रिका के लिए मौजूं है कि ‘तुम्हारे शहर के सारे दीये तो सो गए कब के, हवा से पूछना दहलीज पर ये कौन जलता है।’
उन्होंने कि ‘पत्रिका’ के राजस्थान में चलाए गए अभियान ‘जब तक काला तब तक ताला’ की चर्चा करते हुए कहा कि राजस्थान सरकार ने मीडिया के साथ ही पुलिस और न्यायपालिका का मुंह बंद करने वाला आदेश जारी किया। ‘राजस्थान पत्रिका’ ने इस काले कानून का विरोध किया तो सरकार ने विधेयक वापस ले लिया, लेकिन ‘पत्रिका’ को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। उन्होंने कहा कि मीडिया के समक्ष आज बड़ी चुनौती है। लोकतंत्र को बचाने के लिए उसे जनता के बीच जाना ही पड़ेगा क्योंकि जनता ही उसे बचा सकती है।