3 दशक का दंश
कश्मीर पंडितों के घाटी छोड़ने के पीछे कई तरह की बातें सामने आईं। नरसंहार से लेकर सरकार के कठोर कदमों तक कई ऐसी बातें रहीं जिन्होंने अपने ही देश में कश्मीरी पंड़ितों को शरणार्थियों वाला जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिया। बात 1989-90 की है। जब कश्मीर में सेना की सख्ती और आतंकवादी हमलों के बीच एक आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-इस्लाम ने पुलवामा में कई जगह पोस्टर लगाए थे, जिनमें कहा गया कि कश्मीरी पंडित या तो घाटी छोड़ दें या फिर मरने के लिए तैयार रहें।
कश्मीर पंडितों के घाटी छोड़ने के पीछे कई तरह की बातें सामने आईं। नरसंहार से लेकर सरकार के कठोर कदमों तक कई ऐसी बातें रहीं जिन्होंने अपने ही देश में कश्मीरी पंड़ितों को शरणार्थियों वाला जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिया। बात 1989-90 की है। जब कश्मीर में सेना की सख्ती और आतंकवादी हमलों के बीच एक आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-इस्लाम ने पुलवामा में कई जगह पोस्टर लगाए थे, जिनमें कहा गया कि कश्मीरी पंडित या तो घाटी छोड़ दें या फिर मरने के लिए तैयार रहें।
ये भी पढ़ेंः कांग्रेस नेता शशि थरूर की सरकार को सलाह, संस्कृत अद्भुत भाषा लेकिन व्यवहारिक नहीं कश्मीर में हिंदुओं पर हमलों का सिलसिला 1989 में जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था। जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड भी लागू कर दिया। आतंकी संगठन का नारा था- ‘हम सब एक, तुम भागो या मरो’। इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी।
300 से ज्यादा हिंदू परिवारों की हत्या
कश्मीरी पंडितों पर नब्बे का दशक मानों कोई कहर बनकर टूटा। करोड़ों के मालिक भी अपनी पुश्तैनी जमीन जायदाद छोड़कर शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हो गए। हिंसा के उस दौर में 300 से ज्यादा हिंदू महिलाओं और पुरुषों की हत्या हुई थी। कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया गया, जिसमें लिखा था या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो। पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने टीवी पर कश्मीरी मुस्लिमों को भारत से अलग होने के लिए भड़काना शुरू कर दिया।
इस जिहाद की चपेट में कश्मीर के साथ डोडा भी आ चुका था। हिंदुओं में दहशत लगातार बढ़ रही थी। प्रशासन और जिहादी आतंकवादियों के बीच गठजोड़ ने उनकी चिंताएं और बढ़ा दी थीं। नतीजा ये हुआ घाटी से हिंदुओं ने पलायन शुरू कर दिया। करीब 50 हजार हिंदू परिवार को लेकर घाटी छोड़कर जाने के मजबूर हो गए। ये सिलसिला बदस्तूर जारी है। अब तक घाटी से कश्मीर पंडितों के विस्थापन का सिलसिल नहीं थमा है। वजह जान के डर के साथ भविष्य की चिंता भी है।
दस साल में हुए कई नरसंहार
घाटी में हिंदुओं को डराने और यातनाएं देने के साथ-साथ कई नरसंहार भी हुए।
– डोडा नरसंहार – 1993 को बस रोककर 15 हिंदुओं की हत्या कर दी गई।
– संग्रामपुर नरसंहार – 1997 में ७ कश्मीरी पंडितों को घर में घुसकर मार डाला।
– वंधामा नरसंहार – 1998 को चार कश्मीरी परिवार के 23 सदस्यों को हथियार बंद आतंकियों ने गोलियों से भून डाला।
– प्रानकोट नरसंहार – 1998 को उधमपुर जिले के प्रानकोट गांव में एक कश्मीरी हिन्दू परिवार के 27 लोगों को मारा गया
– अनंतनाग नरसंहार – 2000 में पहलगाम में 30 अमरनाथ यात्रियों की आतंकियों ने निर्मम हत्या कर दी।
घाटी में हिंदुओं को डराने और यातनाएं देने के साथ-साथ कई नरसंहार भी हुए।
– डोडा नरसंहार – 1993 को बस रोककर 15 हिंदुओं की हत्या कर दी गई।
– संग्रामपुर नरसंहार – 1997 में ७ कश्मीरी पंडितों को घर में घुसकर मार डाला।
– वंधामा नरसंहार – 1998 को चार कश्मीरी परिवार के 23 सदस्यों को हथियार बंद आतंकियों ने गोलियों से भून डाला।
– प्रानकोट नरसंहार – 1998 को उधमपुर जिले के प्रानकोट गांव में एक कश्मीरी हिन्दू परिवार के 27 लोगों को मारा गया
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दरअसल कश्मीरी पंडितों के पलायन को लेकर चित्रलेखा जुत्शी की किताब कुछ और कारण बताती है। उनकी बुक ‘लैंग्वेज ऑफ बिलॉन्गिंगः इस्लाम, रीजनल आइडेंटीटी, एंड मेकिंग ऑफ कश्मीर’ में कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की वजह नेशनल कॉनफ्रेंस की ओर से लागू किए गए भूमि सुधार को बताया गया है। इसमें जम्मू-कश्मीर में जमीन का मालिकाना हक उन गरीब मुसलमानों, दलितों और अन्य खेतिहरों को दिया गया जो वास्तविक खेती करते थे। इसी दौरान बड़ी संख्या में राजपूत जमींदार भी कश्मीर छोड़ कर चले गए।
दरअसल कश्मीरी पंडितों के पलायन को लेकर चित्रलेखा जुत्शी की किताब कुछ और कारण बताती है। उनकी बुक ‘लैंग्वेज ऑफ बिलॉन्गिंगः इस्लाम, रीजनल आइडेंटीटी, एंड मेकिंग ऑफ कश्मीर’ में कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की वजह नेशनल कॉनफ्रेंस की ओर से लागू किए गए भूमि सुधार को बताया गया है। इसमें जम्मू-कश्मीर में जमीन का मालिकाना हक उन गरीब मुसलमानों, दलितों और अन्य खेतिहरों को दिया गया जो वास्तविक खेती करते थे। इसी दौरान बड़ी संख्या में राजपूत जमींदार भी कश्मीर छोड़ कर चले गए।
आंकड़ों पर एक नजर
– 3 लाख कश्मीरी पंडितों ने किया पलायन
– 1242 शहरों, कस्बों और गांवों रहते थे कश्मीर पंडित
– 242 जगहों पर सिर्फ 808 परिवार बचे
– 65 हजार कश्मीरी पंडित परिवार जम्म् में पुनर्वास एवं राहत विभाग के पास दर्ज
– 3 लाख कश्मीरी पंडितों ने किया पलायन
– 1242 शहरों, कस्बों और गांवों रहते थे कश्मीर पंडित
– 242 जगहों पर सिर्फ 808 परिवार बचे
– 65 हजार कश्मीरी पंडित परिवार जम्म् में पुनर्वास एवं राहत विभाग के पास दर्ज
ये चाहते हैं कश्मीरी पंडित
कश्मीरी पंडित सबसे बड़ी जो मांग या चाहत है वो ये कि कश्मीर में उनके लिए एक अलग होमलैंड बने। इस होमलैंड को केंद्र शासित राज्य का दर्जा मिले। हालांकि अब तक राज्य के सभी सियासी दलों ने उनकी मांग का विरोध किया है। कांग्रेस और भाजपा भी प्रत्यक्ष रूप से इसका समर्थन नहीं की है। कश्मीरी पंडित चाहते हैं कि 1990 के दशक में उनके मकानों व जमीन जायदाद पर हुए कब्जों को केंद्र और राज्य सरकार छुड़़ाए या फिर जिन लोगों को अपनी सपंत्ति बेचनी पड़ी थी, उसे वह वापस दिलाई जाए।
कश्मीरी पंडित सबसे बड़ी जो मांग या चाहत है वो ये कि कश्मीर में उनके लिए एक अलग होमलैंड बने। इस होमलैंड को केंद्र शासित राज्य का दर्जा मिले। हालांकि अब तक राज्य के सभी सियासी दलों ने उनकी मांग का विरोध किया है। कांग्रेस और भाजपा भी प्रत्यक्ष रूप से इसका समर्थन नहीं की है। कश्मीरी पंडित चाहते हैं कि 1990 के दशक में उनके मकानों व जमीन जायदाद पर हुए कब्जों को केंद्र और राज्य सरकार छुड़़ाए या फिर जिन लोगों को अपनी सपंत्ति बेचनी पड़ी थी, उसे वह वापस दिलाई जाए।
मोदी सरकार से बड़ी उम्मीद
हाल में कश्मीर की सुरक्षा और शांति को लेकर गृह मंत्री अमित शाह ने लगातार बैठकें कीं। इन बैठकों के बीच परिसीमन पर भी चर्चा हुई और बात सामने आई कि सरकार नए परिसीमन पर विचार कर रही है। कश्मीरी पंडितों को भी सरकार के इस रुख से एक आस बंधी। यही नहीं कश्मीरी पंडितों को मोदी सरकार से बड़ी उम्मीद है। 30 साल बाद देश में बहुमत की बड़ी सरकार आई है, ऐसे में अब कोई बहाना नही चल सकता। कश्मीरी पंडितों की सम्मानजनक घर वापिसी व घाटी में स्थायी शांति के लिए केंद्र सरकार को बड़े फैसलें लेने ही होंगे।