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स्‍वतंत्रता दिवस: जानिए, भारत-पाकिस्‍तान के बीच कैसे हुआ संपत्तियों का बंटवारा?

Published: Aug 14, 2018 02:51:26 pm

Submitted by:

Dhirendra

ज्‍यों-ज्‍यों आजादी का दिन नजदीक आ रहा था वायसराय माउंटबेटेन के चेहरे पर शिकन भी बढ़ती जा रही थी।

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स्‍वतंत्रता दिवस: जानिए, भारत-पाकिस्‍तान के बीच कैसे हुआ संपत्तियों का बंटवारा?

नई दिल्ली। करीब 90 सालों की निरंतर संघर्ष के बाद हिन्‍दुस्‍तान के लोगों को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलने का मार्ग प्रशस्‍त हुआ था। आजादी का दिन भी तय हो गया। देश में हर तरफ जश्न का माहौल था, लेकिन तत्‍कालीन दिल्ली के वायसराय हाउस में माउंटबेटेन के चेहरे पर शिकन भी बढ़ती जा रही थी। इसकी बड़ी वजह भारत के बंटवारे के बाद पैदा हुए हालात तो थे ही, लेकिन उससे कहीं ज्यादा चिंताजनक था दोनों देशों के बीच संपत्तियों का बंटवारे का मसला था जिसको लेकर माउंटबेटेन परेशान थी।
चौधरी मुहम्मद अली और एच एम पटेल को चुना
भारत और पाकिस्‍तान का बंटवारा तय होने के बाद एक नए मुल्क की शक्ल लेने वाले पाकिस्तान के बीच संपत्तियों के विभाजन को लेकर कोई सहमति ही नहीं बन पा रही थी। ज्‍यों-ज्‍यों आजादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी माउंटबेटेन की चिंता भी बढ़ती जा रही थी। तमाम कोशिशों के बावजूद जब कोई हल नहीं निकला तो संपत्तियों के बंटवारे के लिए दो लोगों को चुना गया। माउंटबेटेन ने दोनों देशों के बीच संपत्तियों के बंटवारे की जिम्मेदारी जिन दो लोगों को देने का निर्णय लिया वो मुकदमे में दोनों पक्षों के वकील की हैसियत रखते थे। दोनों बेहद अनुभवी अधिकारी थे। एक जैसे सरकारी बंगले में रहते थे। एक जैसी शेवरलेट गाड़ियों में दफ्तर जाते थे। इनमें से एक हिंदू था और दूसरा मुसलमान। ये दोनों शख्स थे चौधरी मुहम्मद अली और एच एम पटेल।
अहम रहा पांच अरब डॉलर का कर्ज
संपत्ति बंटवारे का काम इतना पेचीदा और दिल को दुखाने वाला था कि इसकी जिम्‍मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं था। खासकर भारत पर उस समय के कर्ज को लेकर मामला तनातनी का हो गया था। अंग्रेजों के ऊपर करीब 5 अरब डॉलर का कर्ज था। यह विवाद इतना ज्यादा बढ़ गया कि एच एम पटेल और चौधरी मुहम्मद अली को सरदार पटेल के घर के एक कमरे में बंद कर दिया गया और तय हुआ कि जब तक वे किसी नतीजे पर नहीं पहुंचते हैं तब तक उन्हें वहीं रहना पड़ेगा। डॉमिनिक लॉपियर और लैरी कॉलिन्स अपनी मशहूर किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि रेहड़ी-पटरी वालों की तरह मोल-तोल और कई दिनों की मशक्कत के बाद आखिर दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि बैंकों में मौजूद नगद रकम और अंग्रेजों से मिलने वाले पौंड-पावने का 17.5 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान को मिलेगा और भारत के ऋण का 17.5 हिस्सा वह चुकाएगा। तभी जाकर पांच अरब डॉलर के कर्ज का समाधान निकल पाया।
केवल शराब का नहीं बंटवारा
आपको बता दें कि देश के बीच केवल जमीन का ही बंटवाना नहीं हुआ। बल्कि एक संयुक्‍त परिवार के टूटने के बाद जिस तरह से एक-एक सामान का बंटवारा होता है उसी तरह भारत-पाकिस्‍तान के बीच छोटी-छोटी संपत्तियों का भी बंटवारा हुआ। यहां तक कि सोफा, कुर्सी, मेज, कमोड, साइकिल और पानी पीने के जग का भी। इन सामानों के बंटवारे के वक्त दोनों देशों के अधिकारियों के बीच बाकायदा लड़ाईयां तक हुईं। अपनी पुस्‍तक में डॉमिनिक लॉपियर व लैरी कॉलिन्स लिखते हैं कि विभाग के बड़े अधिकारियों ने अच्छे टाइपराइटर तक छिपा दिए। कलमदान के बदले पानी का जग और हैट के बदले खूंटी स्टैंड तक बदला गया। सबसे ज्याजा जूतम-पैजार तो छूरी-कांटो को लेकर हुई। एक चीज पर कोई बहस नहीं थी या यूं कहें कि पाकिस्तान को यह चाहिए ही नहीं था। और वो चीज थी शराब। बंटवारे के वक्त शराब भारत के हिस्से में आई और पाकिस्तान ने उसके बदले पैसे ले लिए।
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