हमने दी थी पीएलए को मात
इस बात की जानकारी अशीष दास को टॉप के कमांडिंग ऑफिसर ने दी। उसके बाद अशीष दास ने अंग्रेजी अखबार को दिए अपने साक्षात्कार में बताया कि आशीष टॉप के कमांडिंग ऑफिसर ने जब मुझे फोन किया तो उस समय मैं घर पर था। उन्होंने बताया कि उनकी तेंगा क्षेत्र में धूमने आईं थी। बेटी को जब यह पता चला कि चेक पोस्ट का नाम उसके पिता के नाम पर रखा गया है तो वह अपने आंसू रोक नहीं सकी। उन्होंने बताया कि वर्ष 1986 में इस सेक्टर में हमारी यूनिट ने वीरता का परिचय दिया था। उनकी यूनिट ने चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को मात दी थी और 14 हजार फुट की उंचाई पर स्थित चोटी पर कब्जा कर लिया था। उस समय उनकी बेटी पैदा भी नहीं हुई थी। बाद में उस पोस्ट का नाम मेरे नाम पर रखा गया था। इस बात की जानकारी सबसे पहले मुझे भी 17 साल बाद मिली थी।
इस बात की जानकारी अशीष दास को टॉप के कमांडिंग ऑफिसर ने दी। उसके बाद अशीष दास ने अंग्रेजी अखबार को दिए अपने साक्षात्कार में बताया कि आशीष टॉप के कमांडिंग ऑफिसर ने जब मुझे फोन किया तो उस समय मैं घर पर था। उन्होंने बताया कि उनकी तेंगा क्षेत्र में धूमने आईं थी। बेटी को जब यह पता चला कि चेक पोस्ट का नाम उसके पिता के नाम पर रखा गया है तो वह अपने आंसू रोक नहीं सकी। उन्होंने बताया कि वर्ष 1986 में इस सेक्टर में हमारी यूनिट ने वीरता का परिचय दिया था। उनकी यूनिट ने चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को मात दी थी और 14 हजार फुट की उंचाई पर स्थित चोटी पर कब्जा कर लिया था। उस समय उनकी बेटी पैदा भी नहीं हुई थी। बाद में उस पोस्ट का नाम मेरे नाम पर रखा गया था। इस बात की जानकारी सबसे पहले मुझे भी 17 साल बाद मिली थी।
बनते बिगड़ते रहे हैं चीन से हमारे रिश्ते
उन्होंने कहा कि चीन के साथ हमारे रिश्ते बनते बिगड़ते रहे हैं। 1962 में युद्ध में भारत को मुंह की खानी पड़ी थी। उसके बाद 1967 और 1986 में छोटी हमने चीनी सेना को मात दी थी। 1986 में ही हमने तेंगा के चेक पोस्ट का फतह किया था। दास ने उन दिनों को याद करते हुए बताया, हमें बूम ला से अपना रास्ता बनाना था और सांगेत्सर झील पहुंचना था। चीनी सैनिक झील के उस पार बैठे थे। हमें आदेश था कि वहां मोर्चा संभालें। हमने कुछ दिन बाद आगे बढ़ना शुरू कर दिया और ख्याफो पहुंच गए जो उस समय बर्फ से ढका हुआ था। हमें यह नहीं पता था कि हमने न केवल चीनी शिविर को पार कर लिया है, अपनी स्थिति को भी मजबूत कर लिया है। उस आपरेशन में हमें चूहों को खाकर जिंदा रहना पड़ा। पूरी कार्रवाई के दौरान दोनों पक्षों के बीच भीषण गोलाबारी हुई और जवानों को तीन दिन बिना खाना के भी रहना पड़ा था। आपको बता दें कि आशीष दास असम रेजिमेंट में कर्नल थे। सेना से सेवानिवृत होने के बाद वह अपने परिवार के साथ घर पर ही रहते हैं। ये बात 1986 की है जब अरुणाचल प्रदेश के सुमदोरोंग चू वैली में पोस्टेड था तब चीनी सैनिक एलओसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) के काफी अंदर तक घुस आए थे।
उन्होंने कहा कि चीन के साथ हमारे रिश्ते बनते बिगड़ते रहे हैं। 1962 में युद्ध में भारत को मुंह की खानी पड़ी थी। उसके बाद 1967 और 1986 में छोटी हमने चीनी सेना को मात दी थी। 1986 में ही हमने तेंगा के चेक पोस्ट का फतह किया था। दास ने उन दिनों को याद करते हुए बताया, हमें बूम ला से अपना रास्ता बनाना था और सांगेत्सर झील पहुंचना था। चीनी सैनिक झील के उस पार बैठे थे। हमें आदेश था कि वहां मोर्चा संभालें। हमने कुछ दिन बाद आगे बढ़ना शुरू कर दिया और ख्याफो पहुंच गए जो उस समय बर्फ से ढका हुआ था। हमें यह नहीं पता था कि हमने न केवल चीनी शिविर को पार कर लिया है, अपनी स्थिति को भी मजबूत कर लिया है। उस आपरेशन में हमें चूहों को खाकर जिंदा रहना पड़ा। पूरी कार्रवाई के दौरान दोनों पक्षों के बीच भीषण गोलाबारी हुई और जवानों को तीन दिन बिना खाना के भी रहना पड़ा था। आपको बता दें कि आशीष दास असम रेजिमेंट में कर्नल थे। सेना से सेवानिवृत होने के बाद वह अपने परिवार के साथ घर पर ही रहते हैं। ये बात 1986 की है जब अरुणाचल प्रदेश के सुमदोरोंग चू वैली में पोस्टेड था तब चीनी सैनिक एलओसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) के काफी अंदर तक घुस आए थे।