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Krishna Janmashtami 2020 :  केरल के गुरुवायूर मंदिर को दक्षिण का ‘द्वारका’ क्यों कहा जाता है?

locationनई दिल्लीPublished: Aug 10, 2020 04:15:48 pm

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Dhirendra

मंदिर में मौजूद कृष्ण ( Lord Krishna ) रूप को स्वयं ब्रह्मा ( Brahma ) ने भी पूजा था। नव विवाहित जोड़े यहां अपने वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए आशीर्वाद पाने आते हैं।
गुरुवायूर मंदिर ( Guruvayoor Mandir ) करीब 5000 साल पुराना है। 1638 में इसके कुछ भाग का पुनर्निमाण कराया गया था। इस मंदिर में केवल हिंदू ही पूजा कर सकते हैं।
श्रीकृष्ण को गुरुवायुरप्पन कहते हैं जो कि वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण ( Bhagwan Shri Krishna ) का बालरूप है।

Guruvayoor Temple

गुरुवायूर मंदिर में नव विवाहित जोड़े यहां अपने वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए आशीर्वाद पाने आते हैं।

नई दिल्ली। कृष्ण जन्माष्टमी 2020 ( Krishna Janmashtami 2020 ) उत्सव मनाने के लिए देश भर में कई मंदिर प्रसिद्ध हैं। इस बार भ्ज्ञी देशभर के मंदिरों में कृष्ण जन्माष्टमी ( Krishna Janmashtami ) की तैयारी अंतिम चरण में है। लेकिन बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि केरल के गुरुवायूर मंदिर ( Guruvayoor Mandir ) को दक्षिण का द्वारका क्यों कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान कृष्ण ( Bhagwan Krishna ) के दर्शन को अपना अच्छा नसीब तक मानते हैं। आइए, आज हम आपको बताते हैं कि गुरुवायूर मंदिर की इतनी अहमियत क्यों है?
केरल में स्थित यह मंदिर पूरे भारत में प्रसिद्ध है। इस मंदिर में मौजूद कृष्ण रूप को स्वयं ब्रह्मा ( Brahma ) ने भी पूजा था। नव विवाहित जोड़े यहां अपने वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए आशीर्वाद पाने आते हैं।
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दरअसल, केरल ( Kerala ) के त्रिसूर शहर में गुरुवायूर मंदिर है। मंदिर के गर्भगृह में श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित है। मंदिर में स्थापित मूर्ति मूर्तिकला का एक बेजोड़ नमूना है। गुरुवायूर मंदिर करीब 5000 साल पुराना है। 1638 में इसके कुछ भाग का पुनर्निमाण कराया गया था। इस मंदिर में केवल हिंदू ही पूजा कर सकते हैं। वर्तमान में गुरुवायूर देवासम बोर्ड के अध्यक्ष केबी मोहनदास की देखरेख में इस मंदिर की गतिविधियों का संचालन होता हैं।
गुरुवायूर मंदिर केरल के हिंदुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण पूजा स्थलों में से एक है। इसे भुलोका वैकुंठ के रूप में जाना जाता है। इसे पृथ्वी पर विष्णु के पवित्र निवास स्थान भी माना जाता है। गुरुवायूर मंदिर के प्रमुख देवता विष्णु हैं और उन्हीं के अवतार कृष्ण के रूप में पूजा जाता है। यहां श्रीकृष्ण को गुरुवायुरप्पन कहते हैं जो कि वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण का बालरूप है।
त्रिसूर के इस मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा भी है। पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान कृष्ण ने मूर्ति की स्थापना द्वारका में की थी। एक बार जब द्वारका में भयंकर बाढ़ आई तो यह मूर्ति बह गई और बृहस्पति को भगवान कृष्ण की यह तैरती हुई मूर्ति मिली। उन्होंने वायु की सहायता से द्वारा इस मूर्ति को बचा लिया।
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बृहस्पति ने इस मूर्ति को स्थापित करने के लिए पृथ्वी पर एक उचित स्थान की खोज आरंभ की। खोज करते करते वे केरल पहुंचे जहां उन्हें भगवान शिव व माता पार्वती के दर्शन हुए। शिव ने कहा की यही स्थल सबसे उपयुक्त है। यहीं पर कृष्ण की मूर्ति की स्थापना की जानी चाहिए।
उनकी बात मानकर गुरु बृहस्पति एवं पवनदेव ने मूर्ति का अभिषेक कर उसकी स्थापना की और भगवान ने उन्हें वरदान दिया कि मूर्ति की स्थापना गुरु एवं वायु के द्वारा होने के कारण इस स्थान को ‘गुरुवायुर’ के नाम से ही जाना जाएगा। तब से यह पवित्र स्थल इसी नाम से प्रसिद्ध है।
एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक इस मूर्ति को भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी को सौंपा था। इस मंदिर का निर्माण स्वंय विश्वकर्मा द्वारा किया गया था। गुरुवायूर मंदिर का निर्माण इस प्रकार हुआ कि सूर्य की प्रथम किरणें सीधे भगवान गुरुवायूर के चरणों पर गिरें।
मंदिर में भगवान कृष्ण की पूजा आदिशंकराचार्य द्वारा निर्देशित वैदिक परंपरा एवं विधि-विधान से होता है। यहां पर गुरुवायूर की पूजा के पश्चात् मम्मियुर शिव की अराधना का विशेष महत्व है। इस मंदिर में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का खास महत्त्व है।
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