महाराष्ट्र सरकार ने सख्त गाइडलाइंस जारी की। टावर लगाने से पहले लेनी होगी मंत्रालय की अनुमति।
मुंबई. महराष्ट्र में मोबाइल टावर की नई गाइडलाइंस जारी की गई हैं। नेटवर्क कंपनियों को टावर लगाने से पहले टेलीकम्यूनिकेशन विभाग से अनुमति लेनी होगी। कई मानकों पर अनुमित मिलेगी। इसके अलावा यदि इलेक्ट्रोमैगनेटिक फ्रीक्वेंसी जरूरत से ज्यादा रही तो टावर को बंद कर दिया जाएगा।
स्वास्थ्य पर पड़ रहा बुरा असर
दरअसल, टावर से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैगनेटिक फ्रीक्वेंसी तय सीमा से अधिक होने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं। लिहाजा इलेक्ट्रोमैगनेटिक फ्रीक्वेंसी को सही मात्रा में तय रखने पर जोर दिया जा रहा है। इससे न सिर्फ मानव बल्कि पौधों पर भी असर पड़ता है। इस बाबत राज्य सरकार के पास कई शिकायतें आई थीं। इसमें कहा गया था बेहद कम दूरी पर टावर लगाए जा रहे हैं। इसके अलावा रेडिएशन से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। इसके बाद सरकार ने कहा कि इलेक्ट्रोमैगनेटिक फ्रीक्वेंसी की समय समय पर निगरानी की जाएगी। फ्रीक्वेंसी तय सीमा से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। जो टावर लग चुके हैं या फिर लगने वाले हैं, उन्हें लगाने से पहले कंपनियों को डीओटी यानी टेलीकम्यूनिकेशन विभाग से क्लियरंस लेनी होगी।
केंद्र सरकार, वन विभाग की मंजूरी अनिवार्य करेगी
पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक जल्द ही मोबाइल टावर के रेडिएशन नियमों में फेरबदल किया जा सकता है। मंत्रालय की एक कमेटी ने हाल में मोबाइल टावर रेडिएशन पर अध्ययन किया था। रिपोर्ट के अनुसार, संरक्षित इलाकों में मोबाइल टावर लगाने के लिए वन विभाग की मंजूरी लेनी होगी। इसके अलावा पहले से लगे मोबाइल टावर के 1 किलोमीटर के दायरे में दूसरा मोबाइल टावर नहीं लगाया जा सकेगा। नए मोबाइल टावर को 80 फीट ऊंचाई या 199 फीट के निचले स्तर पर लगाना होगा। साथ ही इलेक्ट्रोमैगनेटिक फ्रीक्वेंसी को प्रदूषण मापने के पैमाने के तहत मान्य कराना होगा।
इन मानकों पर मिलेगी अनुमति
– वायरलेस यूजर्स की संख्या कितनी?
– कहीं उड़ानों पर रेडिएशन संबंधी असर तो नहीं
– माइक्रोवेव लिंक्स में रुकावट तो नहीं